इंसान कुछ भी करे, रचनात्मक होना चाहिए. यही तो आनंद है जिंदगी का कि आप अपने समय का सदुपयोग कैसे करते हैं या अपनी ऊर्जा को कैसे कामों में लगाते हैं या मन को कैसे व्यस्त रखते हैं. इन सब बातों पर विचार करें.
इसलिए रचनात्मक, क्रियात्मक कार्य करते रहें. खुल कर जीयें ! खिलकर जीयें ! सड़ कर नहीं जीना चाहिये. मन की पुरानी आदत है, वह खिलानेवाली बातों को भूल ही जाता है.