यदि आप अपने जीवन के बारे में उत्तम विचार रखते हो, तो आपका जीवन उत्तम बनेगा और यदि आप जीवन के प्रति नकारात्मक भाव रखते हो, तो आपका सारा जीवन नकारात्मक बन जायेगा. आपके शरीर में जो जीवनी शक्ति है, वह नकारात्मक बन जायेगी. क्योंकि यह सच बात है कि आपका शरीर आपके ही विचारों से प्रभावित होता है. जैसा आपका विचार होगा, वैसा ही आपका जीवन भी होगा.
जो लोग जीवन को आनंद के रूप में, सफलता के रूप में और संगीत के रूप में स्वीकार करते हैं, उनका जीवन आनंदमय हो जाता है. ऐसे भी लोग हैं, जो जीवन को निराशा, असफलता और विपत्ति के रूप में स्वीकार करते हैं, लिहाजा उनका जीवन आंसू बन कर बह जाता है.अब प्रश्न यह उठता है कि हम अपने जीवन को आनंद के रूप में स्वीकार करते हैं या दुख के सागर के रूप में स्वीकार करते हैं. हमारे जीवन को इससे कुछ लेना- देना नहीं है.
जीवन तो एक सीधा जीवन है. आप इस जीवन को जिस भी पात्र में रखेंगे, उसका स्वरुप वैसा बन जायेगा. जैसे जल को यदि घड़े में रखेंगे, तो उसका स्वरुप घड़े का बन जायेगा और छोटी लोटकी में रखेंगे, तो वह लोटकी जैसा बन जायेगा. इसलिए जीवन को सही तरीके से जीना बहुत आवश्यक है.