कोई भी *रिश्ता* बनाओ, उसकी कीमत तभी तक है जब तक उसमे *प्रेम* है। और जब प्रेम नहीं तो कोई भी सम्बन्ध *बंधन* है। और जहाँ बंधन है वहां *जिंदगी* नहीं, और जिस जिंदगी में प्रेम नहीं वह जिंदगी पहाड़ जैसी बोझिल हो जाती है। जिंदगी तो विदा हो जाती है और आदमी बस *वेंटिलेटर* पर जैसे *सांस* चलती है, बस ऐसे ही सांस लेता रहता है। और केवल सांस लेना ही जिंदगी नहीं होती। उस जिंदगी में रिश्ते भी होते हैं, जिनमें *प्रेम, सम्मान और संवेदना* भी होती है। और जिस भी रिश्ते में ये सब होता है उसे किसी *रक्षा* की जरूरत नहीं होती, वह सबसे बड़ी *ताकत* होती है। *धागा* तो एक *प्रतीक* है, हमें बहुत बार प्रतीकों में बात करनी होती है जिन्दगी को बेहतर बनाने के लिए.