“कोई मेरी ख़ामोश मौजूदगी में भी सहज रहे”
“ज़िंदगी का यही मतलब है… जब मैं बिना कुछ किए आराम कर पाता हूँ, और मेरे पास कोई ऐसा होता है जिसे मेरी मौजूदगी से कोई परेशानी नहीं होती”
_ यह बिल्कुल सही, गहरी और मानवीय भावना है.
– क्यों यह सही है ?
1. मनुष्य को सुरक्षा और सहजता चाहिए..
_ हम सबके भीतर एक शांत इच्छा होती है — कोई ऐसा हो जिसके सामने हमें खुद को साबित न करना पड़े… न कोई दिखावा, न कोई रोल.
_ बस “मैं हूँ, इतना काफी है” वाली भावना..
2. सच्चा रिश्ता वही होता है.. जहाँ आपकी उपस्थिति बोझ न हो.
_ जब कोई आपकी मौजूदगी में खुद बना रहे और आप उसकी मौजूदगी में… तो वही वास्तविक जुड़ाव है.
_ ये बहुत दुर्लभ और बहुत मूल्यवान होता है.
3. शांति “करने” में नहीं, “होने” में मिलती है..
_ कभी-कभी ज़िंदगी का सबसे सच्चा अर्थ तब मिलता है जब हम कुछ नहीं कर रहे होते… और फिर भी पूरा महसूस करते हैं.
__ अगर आपको ऐसा कोई क्षण मिले, कोई व्यक्ति मिले, या सिर्फ अपने भीतर ऐसी शांति मिले–
_ तो समझिए कि आप सही दिशा में हैं, क्योंकि मन वहीं आराम पाता है.. जहाँ उसे स्वीकार किया जाता है.!!
“जब कोई मेरी ख़ामोश मौजूदगी में भी सहज रहे, वही रिश्ता असली मायने रखता है”




