हम अक्सर जो नहीं हैं, वैसा दिखने का स्वांग करते हैं. यह स्वांग ही एक दिन हमें निगल जाता है. इसके बजाय अगर हम अपनी कमियों- कमजोरियों को स्वीकार करते हुए चलें, तो जीवन का सफ़र बड़े सकून से कट सकता है और लोगों का सहयोग भी भरपूर मिल सकता है.
उतार चढ़ाव तो जीवन के अभिन्न अंग हैं. उन से घबराने के बजाय उन का मुकाबला करना चाहिए. हम आखिर ऐसी गारन्टी ले कर चलते ही क्यों है कि दुःख हमारे पास फटकेगा ही नहीं और सुख हमेशा बाहें फैलाए खड़ा रहेगा.
झूठे वादे, कोरे आश्वासन व खोखली सहानुभूति से छणिक सामीप्य हासिल किया जा सकता है, परन्तु सच के सामने आते ही दूरी बढ़ जाती है.