सुविचार – मैं चाहता ही नहीं कि हम कभी मिलें.. – 243

मैं चाहता ही नहीं कि हम कभी मिलें..

_ क्योंकि मुझे लगता है कि यह कसक, यह इंतज़ार यही तो हमारी पहचान है..
_ मुलाक़ात हो जाएगी तो शायद यह बेचैनी ख़त्म हो जाएगी, और मुझे डर है कि फिर दिल इतनी शिद्दत से तुम्हें पुकारना छोड़ देगा..
_ कुछ रिश्ते पूरे नहीं होते, फिर भी अधूरे रहकर ज़्यादा खूबसूरत लगते हैं..
_ शायद हमारा रिश्ता भी वैसा ही है..
_ जहाँ मिलने की ख्वाहिश से ज़्यादा ना मिलने की कसक, दिल में हमेशा ज़िंदा रहनी चाहिए…!

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