अन्य प्राणी पेट के लिए जीते हैं, लेकिन मनुष्य *तृष्णा* में जीता है। इसीलिए इसके पास सब कुछ होते हुए भी यह *सर्वाधिक* *दुखी* है.
आवश्यकता के बाद *इच्छा* को रोकें, अन्यथा यह अनियंत्रित बढ़ती ही जायेगी, और *दुख* का कारण बनेगी.
आवश्यकता के बाद *इच्छा* को रोकें, अन्यथा यह अनियंत्रित बढ़ती ही जायेगी, और *दुख* का कारण बनेगी.