सभी हैं दुखी, इसलिए नहीं कि जीवन का स्वाभाव दुख है ;
बल्कि इसलिए कि हमें सुखी होने की कला नहीं आती !
और हमें दुखी होने की इतनी कला आती है, जिसका कोई हिसाब नहीं !
हम खुद ही खुद को दुःख देते हैं,
हम ढूंढ ढूंढ कर खुद को वो बातें याद दिलाते हैं, जो हमारा दिल दुखाती है.
लोग कहते हैं जीवन व्यर्थ है, यह नहीं कहते कि हमारे जीने का ढंग व्यर्थ है.