दुख – सुख ….
जब तक हम दूसरों के दुख-सुख में हाथ नहीं बंटाएंगे तब तक जीवन की सार्थकता साबित नहीं होगी.
जब हम दया, सेवा और कर्तव्य-पारायणता से भरे होते हैं तो अपने आप में आनंद अनुभव करते हैं.
सभी के बीच अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए जीना ही जीवन है.