” सोच का अँधेरा ” रात के अँधेरे से ज्यादा खतरनाक होता है..
” सोच का अँधेरा ” रात के अँधेरे से ज्यादा खतरनाक होता है..
ये तजुरबा भी मिला है मुझे बुझे हुए चरागों से अक्सर..
कि हर “अँधेरा” भी, कुछ ना कुछ “देखना” सिखाता है…
कि हर “अँधेरा” भी, कुछ ना कुछ “देखना” सिखाता है…