सुविचार – *अपेक्षा ही दुःख और निराशा का कारण !* – 3452

*अपेक्षा ही दुःख का कारण !*

*किसी दिन एक मटका और गुलदस्ता साथ में खरीदा हो और घर में लाते ही 50 रूपये का मटका अगर फूट जाए तो हमें इस बात का दुःख होता है।* क्योंकि मटका इतनी जल्दी फूट जायेगा ऐसी हमें कल्पना भी नहीं थीं। *परंतु गुलदस्ते के फूल जो 100 रूपये के हैं, वो शाम तक मुरझा जाएं, तो भी हम दुःखी नहीं होते।* क्योंकि ऐसा होने वाला ही है, यह हमें पता ही था।

*मटके की इतनी जल्दी फूटने* की हमें अपेक्षा ही नहीं थीं, तो फूटने पर दुःख का कारण बना। *परंतु​ फूलों से अपेक्षा थीं, इसलिए​ वे दुःख का कारण नहीं बने।* इसका मतलब साफ़ है कि *जिसके लिए जितनी अपेक्षा ज़्यादा,* उसकी तरफ़ से उतना दुःख ज़्यादा और जिसके लिए जितनी अपेक्षा कम, *उसके लिए उतना ही दुःख भी कम।।*

*”ख़ुश रहें .. स्वस्थ रहें .. मस्त रहें ..”*

*स्वयं विचार करें ..

अपना दुख किसी को नहीं बताना चाहिए, सिर्फ खुशियां ही बांटनी चाहिए.

_ दुःख व्यक्तिगत होता है, बहुत खास लोग भी एक निश्चित सीमा तक ही सुन पाते हैं,
_उसके बाद वे आपको दुःखी आत्मा का ठप्पा लगाकर चले जायेंगे,
_ भले ही वे रोजाना आपके अंदर अपनी नकारात्मकता फेंककर जाते रहें हो.!!
“जीवन कभी भी हमारी सभी अपेक्षाओं को पूरा नहीं करेगा.

_ फिर भी हमें बिना शिकायत किए सभी निराशाओं को स्वीकार करना चाहिए.”

जितने दिन जी लिए बस उतनी ही है ज़िन्दगी,

_ मिट्टी के गुलदस्ते की कोई उम्र नहीं होती..

दूसरों की आंखों में जो स्वयं को देखने की चाह है…

_उस को माचिस लगा दो, क्योंकि वहां सिर्फ दुःख और पीड़ा है..!!

किसी के दुःख को वही समझ पाता है ..जो वैसी ही परिस्थिति से स्वयं गुजरा हो..!!
दुःख जीवन का एक मूल्य है, जो आपको ऊंचाई और आकार देता है.
सब कुछ ख़त्म हो जाता है और दुःख भी !! यदि आपने इसे एक उपलब्धि के रूप में देखा होता, तो आपको अलग महसूस होता और आप आभारी होते !!!
हमारी ज़िन्दगी हमारे हाथ है, आपके साथ जो कुछ भी घटित हुआ है वह आपकी अपनी देन है,

शायद आप अन्य लोगों से बहुत अधिक अपेक्षा करते हैं और उन्हें अपने साथ छेड़छाड़ करने देते हैं,

_जिसके परिणामस्वरूप जब चीज़ें आपकी अपेक्षा के अनुरूप नहीं होती तो आप औरों को दोष देने लगते हैं.

_आप कभी भी वह नहीं बन पाएंगे जो आप बनना चाहते हैं यदि आप अभी जो भी हैं _उसके लिए हर किसी को दोष देते रहेंगे.

आप अपने जीवन में किस पोजीशन पर खड़े हैं यह जानना बहुत आवश्यक है ;

_क्योंकि जब आप अपनी स्थिति से ज्यादा करने की कोशिश करते हैं

_तब भी बहुत दुखों का सामना करना पड़ता है..!!

हम सिर्फ अपने दुखों के बारे में बात करते हैं,

_ उनको मिटाने की चिंता नहीं करते.!!

कुछ दुखों के हिस्से नहीं आता उन्हें दूसरों के साथ बाँटा जाना..

_ कुछ दुख बेहद निजी होते है वो केवल हमारे अंतर्मन में रिसते रहते है..!!

किसी को दुःख पहुंचाना एक क़र्ज़ है,

_ जो दुःख देने वाले को कभी-न-कभी, किसी न किसी के हाथों ब्याज सहित वापस मिलेगा ही मिलेगा.

_ हमें अपने आस-पास के लोगों को दुःख देने का कोई अधिकार नहीं है..!!

-कभी हद से ज्यादा उम्मीद ना रखें _क्योंकि जब हम किसी से ज्यादा उम्मीद रखते हैं और वह हमारी उम्मीदों पर पानी फेर देता है _तब हमें ज्यादा बुरा लगता है..!!

-कभी हद से ज्यादा फरमाइश ना रखें _क्योंकि जब आप ज्यादा फरमाइशें रखेंगे _और वह किसी कारणवश पूरी नहीं हो सकेगी _तो भी आप बहुत दुखी होंगे.!!

आखिर हमारे दुखों की मूल जड़ कहाँ है ?

_क्या है जो हम समझ नहीं पा रहे हैं ?
_बेशक उसकी सोच हम से अलग हो, बेशक उसके रास्ते अलग हों, बेशक उसके तजुर्बे हम से अलग हों, बेशक वो अलग हालातों से गुजरा हो..
_लेकिन हमारी शर्त यही है कि वो बिल्कुल हमसा देखे, हमसा समझे, हमसा करे,
_हमारी अपनी ज़िंदगी को दुश्वार करने को एक यही ख़्याल बहुत है..
_हम लाख चाहें तो भी उस जैसे नहीं हो सकते, इसीलिए हम उस जैसा होने की कोशिश नही करते, कोशिश करते भी हैं तो जल्दी हार जाते है, इस सच से तो हम सभी बखूबी वाकिफ है,
_लेकिन जब बात यही सच किसी दूसरे पर लागू करने की होती है कि अगर वो लाख चाहे तब भी वो हम जैसा नहीं हो सकता,
क्योंकि रब ने हर किसी को एक दूसरे से बिल्कुल अलग बनाया है, तब यह सच हमसे कहीं छूट जाता है..
इस सच का हमसे छूट जाना ही:
— हमारे जीवन में सभी दुखों का कारण है,
— एक आनंदमयी जीवन कष्टदायक हो जाता है इसका कारण है, वास्तव में हम खिलाफत उस इंसान की नही बल्कि, उसकी विभिन्नताओं की कर रहे होते है..
__बस इतनी छोटी सी बात हम नही समझ पाते, उसकी विभिनताओं से तालमेल बैठाना ही इस जीवन को, उसकी बनाई इस दुनिया को समझना है..
दुःखो से चारो तरफ घिरने पर होने वाली बेचैनी और छटपटाहट मन को मार देती है,

_ और फिर हम जीवन के सफर में निढाल हो जाते हैं,
_ लेकिन जिम्मेदारियों का बोझ हमे रुकने नही देता हमे उठना पड़ता है, चलना पड़ता है,
_ खुद को खोने की शर्त पर ही सही.. पर रुकना मना है…!
यदि आप इसका अभ्यास करते हैं तो बिल्कुल राहत मिलेगी ! _ क्योंकि आजकल निराशाएँ रोज़ की तरह होती हैं ! इसलिए अपेक्षाओं को शून्य कर दें !!

_ इस तरह, आप जीवन में बहुत अधिक निराशा से बचेंगे.

Absolutely relieving if you practice it! Cause nowadays disappointments happen like daily! Hence reduce expectations to zeroThat way, you avoid too much disappointment in life.

आपको निराश करने के लिए लोगों को दोष न दें, _बल्कि उनसे बहुत अधिक अपेक्षा करने के लिए खुद को दोषी ठहराएं.

Don’t blame people for disappointing you, blame yourself for expecting too much from them

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