जैसे- जैसे हम विकसित होते जाते हैं, वैसे- वैसे हमारी चेतना अपने सम्पूर्ण दायरे में विस्तारित होते हुए, _ हमारी मानवीय छमता की व्यापकता को प्रकट करती है.
जैसे- जैसे हम विकसित होते जाते हैं, वैसे- वैसे हमारी चेतना अपने सम्पूर्ण दायरे में विस्तारित होते हुए, _ हमारी मानवीय छमता की व्यापकता को प्रकट करती है.