दूसरों को देखते समय हम क्या देखते हैं _ यह आप कि नजर की स्पष्टता पर निर्भर करता है _ जिससे हम देखते हैं.
इसलिए दूसरों को आंकने में जल्दबाजी न करें, _ खासकर अगर आपके जीवन का दृष्टिकोण क्रोध, ईर्ष्या, नकारात्मकता या अधूरी इच्छाओं से घिरा हो.
किसी व्यक्ति को पहचानने से _ यह परिभाषित नहीं होता कि वे कौन हैं ;
_यह ” जो आप हो ” उसे परिभाषित करता है.
हर कोई अपनी अपनी जंग लड़ रहा है, _ बाहर से हंसते हुए चेहरे भी अपने अंदर दुख का अथाह सागर समेटे होते हैं,,