” लत अगर गुलामी की लगी हो तो, _ आज़ादी के ख्याल से भी ड़र लगता है,”
गर कोई दूसरा इंसान बस इतनी सी बात जान लेता है कि हमें उसकी कौन सी बात चुभती है तो वो हमसे केवल चार कड़वी बातें कहकर हमसे ज़िन्दगी भर अपनी गुलामी करवा सकता है और ज़िन्दगी भर के लिए हमारा मालिक बन सकता है…
एक हम हैं कि जो बिना सोचे समझे, बिना विचारे, किसी अच्छे गुलाम की तरह उसके बारे में सोच सोचकर अपना कीमती समय उस पर बर्बाद कर देते है.
_ हमें इस बात का भ्रम होता है कि हम उसके खिलाफ लड़ रहे हैं लेकिन वास्तव में हम उसी के बिछाये खेल में, उसकी ही मर्जी से खेल रहे होते है,
_ वो एक के बाद एक दाव चलता रहता है और हम पूरी ज़िंदगी गुस्से में उसी की बजाई धुन पर नाचते रहते है…
यह सारा खेल उसकी पसंद का होता है, समय और तारीख भी वही तय करता है, कितना मनोरंजन चाहिए, यह सब कुछ भी वही तय करता है.
_ हमारा काम तो बस प्रतिक्रिया देते हुए उसका मनोरंजन करना है…
_ हंसी की बात यह है इस मनोरंजन के बदले हमें कभी कोई कीमत भी नही मिलती, आखिर में हम बस मुफ्त के गुलाम साबित होते हैं.
संयम, धैर्य, दूरदर्शिता, बड़प्पन इन गुणों को अपनाने से हम किसी दूसरे के गुलाम न होकर खुद अपने मन के स्वामी बन जाते हैं.
_ अगर हम यह गुण धारण कर पाते हैं तो किसी दूसरे इंसान के लिए हमें उसके मनपंसद खेल में खिलाना, हमें गुस्सा दिलाना और हमसे मनचाही प्रतिक्रिया लेकर अपना मनोरंजन करवाना नामुमकिन हो जाता है…