ज़िंदगी से बडा़ कोई मज़हब नहीं होता,
_ और अपने जिस्म से सगा कोई दूजा नहीं होता,
_ तो सबसे पहले ज़िंदगी की परवाह होनी चाहिये,”
“ज़िंदगी” दौड़ रही है तेज़, जाने कब थम जाएगी,,
_ शेष है जितनी “जी लीजिए” ये वापिस फ़िर न आएगी !!
_ शेष है जितनी “जी लीजिए” ये वापिस फ़िर न आएगी !!