दोनों ही सफर थकान भरे, लंबे और बोझिल हो जाते हैं,
_ अगर यात्रा में सामान और जिंदगी से ख्वाहिशें अधिक हों तो..
कभी-कभी ख्वाहिशें मुक्कमल होती हैं..
_मगर इतनी देर से कि उनके होने का कोई अर्थ नहीं होता…!
ज़्यादा सोच लेना भी एक तरह की थकान है, जिसे कोई देख नहीं पाता.!!