हम कौन से हज़ार और दो हज़ार साल जीने आतें हैं यहां …
_ महज़ पचास साठ साल की जिंदगी में ही इतनी बेचारगी,
_ बेबसी और बोझ है की जिंदगी मजबूरी बन जाती है…!!!
” इसलिए समझदारी और ज्ञान के साथ जियें ”
मिट्टी के दीपक सा है ये तन, तेल खत्म तो खेल ख़त्म..!!
सब ओढ़ लेंगे मिट्टी की चादर एक दिन,
_ दुनिया का हर चिराग हवा की नज़र में है..!!