सुखद अनुभव के लिए भीड़ की जरुरत नहीं होती है.!!
हम अपने अनुभवों से औरों को सिखाना चाहते हैं कि रास्ते में आने वाले गड्ढों में गिरने से कैसे बचा जा सकता है..
_लेकिन हर कोई गड्ढों में खुद गिर कर अपने अनुभवों से सीखना चाहता है.!!
यह बहुत गहरी और कड़वी सच्चाई है —जब अनुभव बार-बार निराशा दे तो भरोसे की ज़मीन डगमगा जाती है.
_ ऐसा लगने लगता है कि अब किसी पर विश्वास करना ही भूल गए हैं.
लेकिन यहाँ दो बातें हैं:
1. भरोसेमंद इंसान ढूँढना ज़रूरी नहीं है — सबसे बड़ा सहारा आपका अपना भीतर का भरोसा है.
2. सीमाएँ बनाना ही सुरक्षा है — जब आप खुद तय करते हैं कि कितना साझा करना है और किससे, तब बाहर की दुनिया आपके भीतर को चोट नहीं पहुँचा पाती..
_ “जब बाहर भरोसा टूट जाए, तब भीतर की आवाज़ ही मेरा सबसे सच्चा सहारा बन जाती है”
_ “जब कोई भरोसेमंद न लगे, तब मेरी अपनी अंतरात्मा ही मेरा सबसे सच्चा सहारा है”
“अब लगता है कि कोई भी भरोसेमंद नहीं रहा..
_ लोग सुनते तो हैं, पर समझते नहीं..
_ लेकिन मैंने सीखा है—
_ मुझे अब दूसरों पर नहीं,
_ अपने भीतर की आवाज़ पर भरोसा करना है..
_ यही आवाज़ मेरा सबसे सच्चा सहारा है”