दूसरों को दुख और पीड़ा देने के विचार यदि हमारे मन में हैं तो अनजाने में हम स्वयं के लिए ही दुख और पीड़ा के बीज बो रहे हैं।
यही बीज आगे वृक्ष बनकर हमारे संचित कर्मों में जुड़ जाएंगे जिनका फल हमें भोगना ही होगा।
यही बीज आगे वृक्ष बनकर हमारे संचित कर्मों में जुड़ जाएंगे जिनका फल हमें भोगना ही होगा।