“कुछ भी बाद के लिए मत छोड़ो.
_ बाद में, कॉफी ठंडी हो जाती है.
_ बाद में, तुम्हारी रुचि खत्म हो जाती है.
_ बाद में, दिन रात में बदल जाता है.
_ बाद में, लोग बड़े हो जाते हैं.
_ बाद में, लोग बूढ़े हो जाते हैं.
_ बाद में, ज़िंदगी गुजर जाती है.
_ बाद में, तुम पछताते हो कि कुछ क्यों नहीं किया…
_ जब तुम्हारे पास मौका था.
_ ज़िंदगी एक क्षणभंगुर नृत्य है, एक नाज़ुक संतुलन, जो हमारे सामने खुलने वाले पलों से बनी है, जो फिर कभी उसी तरह लौटकर नहीं आते.
_ पछतावा एक कड़वी दवा है, एक बोझ जो आत्मा पर भारी पड़ता है, छूटे हुए अवसरों और अनकहे शब्दों के साथ.
_ तो, कुछ भी बाद के लिए न छोड़ें.
_ पलों को उसी समय थाम लें, जब वे आएं, खुले दिल और फैलाए हुए हाथों से उन संभावनाओं को गले लगाएं, जो आपके सामने हैं.
_ क्योंकि अंत में, हमें उन चीज़ों का पछतावा नहीं होता, जो हमने कीं, बल्कि उन चीज़ों का होता है, जो हमने नहीं कीं,
_ उन शब्दों का, जो अनकहे रह गए, और उन सपनों का, जो अधूरे रह गए”