भीतर क्षमा हो, तो क्षमा निकलेगी.
भीतर क्रोध हो, तो क्रोध निकलेगा.
इस बात को एक मौलिक सूत्र की तरह अपने हृदय में लिखकर रख छोड़ें कि
जो आपके भीतर है, वही निकलेगा.
परिस्थितियां चाहे कुछ भी हों.
इसलिए जब भी कुछ आपके बाहर निकले, तो दूसरे को दोषी मत ठहराना.
वह आपकी ही संपदा है, जिसको आप अपने भीतर छिपाए थे.