एक ही चोट कह देती है, हीरा है कि काँच है ..
चेहरा खुद चुगली कर देता है, झूठ है कि साँच है ..
धूल उछाले कोई कितनी ही सूरज की अरुणाई पर,
किँतु समय खुद बतला देता है, नहीँ साँच को आँच है …..
चेहरा खुद चुगली कर देता है, झूठ है कि साँच है ..
धूल उछाले कोई कितनी ही सूरज की अरुणाई पर,
किँतु समय खुद बतला देता है, नहीँ साँच को आँच है …..