मूडी होना अथवा अपनी इच्छा से जीना अच्छी बात है, किंतु किसी भी आदत की अति अच्छी नहीं होती. यदि आपके क्रियाकलापों से किसी व्यक्ति या आप के अपने को कोई फर्क नहीं पड़ रहा तब आप को पूरा हक बनता है कि खुद के हिसाब से जिएं, अपनी मरजी के अनुसार व्यवहार करें. परंतु ऐसा यदि नहीं है तो इंसानियत के नाते दूसरों के बारे में सोच कर उन की इच्छाओं व भावनाओं की कद्र करें, उन के लिए भी सोचें.