इच्छाएं… यही तो हैं.. जो हमें जगाए रखती हैं, आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं..
_ जब ये पूरी होती हैं तो हम खुशी से झूम उठते हैं और एक नई इच्छा को जन्म देते हैं,
_ लेकिन क्या हो जब इच्छाएं पूरी न हों ?
_ यहीं से शुरू होता है निराशा का खेल..
_ हम या तो उनकी तारीखें बदल देते हैं, यह सोचकर कि शायद अगली बार सब ठीक होगा,
_ या फिर मन मारकर अपनी इच्छाओं को ही ख़त्म कर देते हैं.!!