सुविचार – मन – 143

मन…

कभी कभी समझ ही नही आता कि ‘मन क्या चाहता है’,
_ कभी भीड़ में खुश है, तो कभी तन्हाई पसंद ,
_ कभी किताबों में खोया, तो कभी दर्द भरे गीतों में गुम,
_ कभी करता हैं चीखें जोर जोर से, और कभी मन है कि जरा सी आहट भी न हो,
_ कभी मीठा सा झरना, मन ही मन मुस्कुराता सा,
_ कभी इतना खिन्न जैसे, नीम की कड़वाहट लपेटा हुआ सा,
_ कभी खामोश सर्द रात के सन्नाटों जैसा, तो कभी जून की गर्मी लिए चकाचौंध सा,
_ कभी बंद आंखो की सिलवट सा सहज, तो कभी छन छन बजती पाजेब सा उद्दंडी,
_ कभी बच्चा सा कोई हठ ले बैठा हो जैसे,
_ कभी प्रौढ़ जैसा कि इशारे तक समझ जाए..!!
_ ख़ैर…

Submit a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected