मन…
कभी कभी समझ ही नही आता कि ‘मन क्या चाहता है’,
_ कभी भीड़ में खुश है, तो कभी तन्हाई पसंद ,
_ कभी किताबों में खोया, तो कभी दर्द भरे गीतों में गुम,
_ कभी करता हैं चीखें जोर जोर से, और कभी मन है कि जरा सी आहट भी न हो,
_ कभी मीठा सा झरना, मन ही मन मुस्कुराता सा,
_ कभी इतना खिन्न जैसे, नीम की कड़वाहट लपेटा हुआ सा,
_ कभी खामोश सर्द रात के सन्नाटों जैसा, तो कभी जून की गर्मी लिए चकाचौंध सा,
_ कभी बंद आंखो की सिलवट सा सहज, तो कभी छन छन बजती पाजेब सा उद्दंडी,
_ कभी बच्चा सा कोई हठ ले बैठा हो जैसे,
_ कभी प्रौढ़ जैसा कि इशारे तक समझ जाए..!!
_ ख़ैर…
“दुनिया वही है, उसमें रंग मन भरता है”
_ ज़िंदगी के ज़्यादातर रंग मन से ही पैदा होते हैं.
_ बाहरी दुनिया वही रहती है, लेकिन मन की अवस्था बदलने पर.. वही चीज़ें बिल्कुल अलग महसूस होती हैं.
_ ज़िन्दगी के बाहर जो कुछ भी होता है, वो तो परिस्थितियाँ हैं.
_ पर परिस्थितियों का रंग कैसा दिखेगा..- वो हमारा मन तय करता है.
_ वही परिस्थिति किसी को तोड़ देती है, और किसी को मजबूत बना देती है.
_ रंग बाहर नहीं बदलते, उन्हें देखने का एंगल बदलता है.
_जब माइंड शांत हो → दुनिया ज़्यादा कोमल लगती है.
_जब माइंड परेशान हो → वही दुनिया ब्लैक & व्हाइट लगती है.
_ उदाहरण :
मन शांत हो → छोटी चीज़ें भी सुंदर लगती हैं.
मन भारी हो → बड़ी से बड़ी खुशियाँ भी फीकी लगती हैं.
मन स्पष्ट हो → निर्णय आसान लगते हैं.
मन उलझा हो → छोटी बात भी पहाड़ लगती है.
ये 4 बातें दिखाती हैं कि रंग मन से ही बनते हैं:
1. सोच बदलो, अनुभव बदल जाता है.
2. Acceptance हो तो बुरी चीज़ें भी सिखाने लगती हैं.
3. Mind clear हो तो decisions simple हो जाते हैं.
4. दृष्टि बदलने से ज़िन्दगी का ‘texture’ बदल जाता है.
एक अशांत मन दुखी होने और शिकायत करने के कारण ढूँढ़ता रहेगा..
_ एक शांत मन वैसे भी खुश ही रहता है.!!
जब हम बुरे लोगों के साथ रहते हैं तो हमारा मन खराब हो जाता है.
_ अपने मन से बुरे लोगों को निकाल दीजिए, आराम मिलेगा.!!
“सच्चा जुड़ाव मन भरता नहीं — मन बदलता है.
_ जो हमें किसी के करीब लाकर — खुद से भी मिलवा दे, वही जुड़ाव नहीं… एक जीवन-संवाद होता है.”
एक भटकता मन दुखी मन है और दुखी मन से आपको गलत सुझाव ही मिल सकते हैं.
_ इसीलिए सबसे पहले आपको अपने मन को शांत करना होगा..
_ क्योंकि यही आपको शांति दिलाएगा.!!
दिनचर्या में अचानक बदलाव आते ही मन का संतुलन डगमगा जाता है.
_ जो परिचित था, जो रोज़ का सहारा था, वह एकदम अनजान-सा लगने लगता है.
_ समय वही रहता है, लोग वही होते हैं, पर भीतर कुछ ऐसा बदल जाता है कि दुनिया सच में अलग-सी महसूस होने लगती है..- जैसे अपनी ही ज़िंदगी को थोड़ा दूर से देख रहे हों.
_ असल में बदली होती है हमारी आदतों की ज़मीन, और उसी के हिलते ही पूरी दुनिया हिलती हुई प्रतीत होती है.!!
क्या है ? “मन का स्थिर होना”
मन के स्थिर होने की एक सूक्ष्म चेक-लिस्ट [check-list] :(अंतर से पहचान)
संकेत क्या आप महसूस करते हैं ?
स्थिरता का अर्थ यह नहीं कि मन हमेशा सोचना बंद कर दे, बल्कि ये है कि ये अब :
_ क्षोभ [irritation] से परे हो जाता है, तुरन्त प्रभावित नहीं होता..
_ बिना कारण के चंचल रहने की आदत छोड़ देता है और जो भी आए-जाए –उसे सिर्फ दिखता है, चिपकता नहीं..
> “स्थिर मन” एक झील जैसा होता है – जिसमें कोई पत्थर डाले तो हलचल तो होती है, पर वो तुरत शांत हो जाता है.
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क्या मन एक बार स्थिर [stable] हो जाए तो कभी अस्थिर [Unstable] नहीं होता ?
नहीं – मन की प्रकृति ही चंचल है.
_ लेकिन जब एक साधक उसे समझ जाता है, तो मन के अस्थिर होने पर भी वो स्वयं अस्थिर नहीं होता.
_ यानी, मन कभी कभी अस्थिर तो हो सकता है, लेकिन आप उस अस्थिरता के साथी नहीं, साक्षी बन जाते हो.
> स्थिर होना एक अवस्था नहीं – एक स्थिर दृष्टि का नाम है.
1. मन अपने आप शांत हो जाता है आपको मन को रोकने की कोशिश नहीं करनी पड़ती.
2. बिना वजह चिंता नहीं होती अचानक बेचैनी या कल्पना की भरमार नहीं होती.
3. बुरा बोलने वाले प्रभावित नहीं करते आप प्रतिक्रिया [reaction] के बजाय सिर्फ निरीक्षण [observe] करते हैं.
4. आप हर दिन कुछ देर मौन में रह सकते हैं और बिना मन-बहलान [entertainment] के कुछ देर बैठना सुखद लगता है.
5. विचार आते हैं, पर चिपकते नहीं.. सोच आई और चली गई – जैसे बादल आसमान में.
6. आप तुरंट नहीं टूटते या भटकते.. इमोशनल [Emotional] हलचल में भी आप स्वयं को संभाल लेते हैं.
7. आपका मन स्नेह, दया और आभार से भरा रहता है – रंजिश से ज्यादा संवेदना रहने लगती है.
> “मन के स्थिर होने की पहचान ये नहीं कि विचार नहीं आते,
– बल्कि ये है कि अब उन विचारों के आने से मैं हिलता नहीं हूं”
“” ना मन को रोका, ना डांटा, _ सिर्फ उसे देखा – जैसे जल में चंद्रमा.
_ और धीरे-धीरे वो स्वयं शांत हो गया, – जैसे कोई अपने घर लौट आया हो””
“मन का रुख”
“दिमाग बोला – सोच ले पहले,”
“दिल बोला – महसूस कर ले…”
_ मन खड़ा था दो राहों पर, एक थी शांति – एक थी उलझन से भरी..
_ जब मन ने दिल की धड़कन सुनी, चुप सा हो गया..
_ ना सोच, ना डर, ना कोई बात थी, सिर्फ एक गहरा, मौन का साथ था.
तब समझा– मन वही है, जिसका रुख जैसा हो जाये,
_ या तो साथी बन जाए, या तो भटकता ही जाए.!!
_ एक ही मन होता है, पर उसका रुख बदलता है ;
_ जब वो दिमाग के नीचे होता है, तो अशांत रहता है ;
_ जब वो दिल के साथ होता है, तो शांत हो जाता है ;
_ और जब वो आत्मा के साथ हो जाता है, तब सब कुछ प्राकृतिक रूप से सही हो जाता है __बिना प्रयास के..!!
””दिल की बात सुनने के बाद मन चुप हो जाता है – दिमाग की बात सुनने के बाद मन और बोलने लगता है””
“मन का वापसी-पत्र”
_ मन बार-बार उसी अवस्था में लौट जाना चाहता है, जहाँ सब कुछ सरल, सुंदर और अपना जैसा लगता है.
_ काश, जीवन वैसा ही रह पाता—जैसा उन अनुभवों में महसूस होता है—
_ मन बार-बार उस द्वार पर जाता है..
_ जहां कोई प्रश्न नहीं होता, सिर्फ एक शांत उपस्थिति होती है.
_ वो एक अवस्था होती है – जहां जीवन को जीने की जरूरत नहीं पड़ती, वो स्वयं ही बहता है, खिलता है.
_ शायद वही अंतर-का घर है, जहां कोई भाव कुछ मांगता नहीं – बस सब कुछ स्वयं ही पूर्ण होता है.
— क्यों मन उसी अवस्था में लौटना चाहता है ?
_ क्योंकि वहां असली “मैं” छुपा होता है – जो दुनिया के शब्द, रूप, दांव-पेच से परे है.
_ जो अवस्था “सरल, सुंदर और अपनी” लगती है – वो आपका असली स्वरूप है.
_ जीवन व्यवहारिक है, पर आत्मा अनुभवी होती है.
“जीवन भटकता है बाहर, पर मन को घर अंदर ही मिलता है”
शरीर की शुद्धता = भीतर की शांति कैसे समझ में आती है ?
अगर शरीर हल्का लगे और मन में अनावश्यक शोर कम हो जाए- यही शुद्धता का सबसे स्पष्ट अनुभव है.
1) मन हल्का लगे – अगर आप किसी भी वजह के बिना हल्का, साफ-साफ सा महसूस करते हैं – जैसा कोई बोझ नहीं – तो ये अंदरूनी शुद्धता का पहला संकेत है.
2) बिना वजह गुस्सा, जलन कम हो – जब मन शुद्ध होता है तो छोटी-छोटी बातें डिस्टर्ब नहीं करतीं.
_ आप रिएक्ट कम, ऑब्जर्व ज्यादा करते हो.
3) बातें, सोच और व्यवहार में एक “सफाई” हो – कुछ झूठ, ड्रामा, हेरफेर करने का मन ही नहीं करता.
_ जो है, वो सीधा दिखने लगता है.
4) अकेलेपन में सुकून मिले – आपको खुद से भागने की जरूरत नहीं पड़ती.
_ अकेले बैठे हो तो मन भागता नहीं – शांत हो जाता है.
5) बुरा करने की इच्छा हो ही नहीं – शुद्ध मन किसी को दुख देने का सोचता नहीं..
_ चाहे सामने कोई गलत ही क्यों न हो.
6) दिल में एक कोमलता, दयालुता टिक जाए – आपका व्यवहार नरम पड़ने लगता है.. _ ज्यादा जजमेंट नहीं होती, सिर्फ समझ होती है.
7) शरीर में हल्का-पन, सुकून, गर्माहट [warmness] महसूस हो – शुद्ध मन का असर शरीर पर पड़ता है..
_ सांस गहरी हो जाती है, सीने में जकड़न कम हो जाती है.
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अगर आप अपने अंदर “सुकून + हल्का-पन + दयालुता” बढ़ती हुई महसूस करते हैं, तो वही अंदरुनी शुद्धता का सबसे असली संकेत [sign] है.!!






