सुविचार – घर – 059

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जब हम किसी स्थान को छोड़ते हैं तो हम अपना कुछ न कुछ पीछे छोड़ जाते हैं, दूर चले जाने पर भी हम वहीं रहते हैं

_और हमारे अंदर ऐसी चीजें हैं जिन्हें हम केवल वहां वापस जाकर ही दोबारा पा सकते हैं.

We leave something of ourselves behind when we leave a place, we stay there, even though we go away. And there are things in us that we can find again only by going back there. – Pascal Mercier

“आपका घर तनाव का इलाज होना चाहिए, _न कि इसका कारण”

“Your home should be the antidote to stress, not the cause of it.” —Peter Walsh

” मैं अब घर जाना चाहता हूँ लेकिन घर लौटना नामुमकिन है, क्योंकि घर कहीं नहीं है.” – श्रीकांत वर्मा
“घर अब घर नहीं रहा..” वो बस चार दीवारों का मकान रह गया है.!!
कितनी कितनी स्मृतियां जुड़ी होती हैं पुराने घर से..!! हम महसूस करते हैं बार बार..!!

_ घर हमें बचपन की उन सभी घटनाओं की याद दिलाता है, जिन्होंने हमें “हमें” बनाया है..!

_हमारे पुराने दिन उसमें इस तरह संरक्षित होते हैं _ कि उस दौर की ओर मन बार बार लौट जाना चाहता है..

_वो घर आज नहीं है, तब भी स्मृतियां उसे खड़ा कर लेती हैं.!!!

_ ना जाने कैसे इन बेजान चीजों से भी हमारी जानें यादों से कैसे चिपक जाती है !!

__ और जिंदगी भर दर्द की एक सुई सा चुभोती रहती है !!

_ हम अपने जीवन में कुछ भी प्राप्त कर लें ..पर उससे अपनी पसन्दीदा चीज को खो देने से उपजा खालीपन कभी नहीं भर सकते..!!

घर जैसा भी था फिर भी आ जाती थी नींद,
_ मैं नए घर में बहुत रोया पुराने के लिए..!!
उस दिन उस पुराने मकान से विदा लेते समय ..मैं आखरी बार रोया.._ मेरे स्मृति कोष में यह अनुभूति बनी हुई है.
_ और जब मैं रो रहा था तो ..यह बात मुझको नितांत रूप से सुनिश्चित थी कि ..उस मकान की आंखों में भी आंसू अवश्य आए होंगे,
_ हांलाकि मैं उस मकान की आंखें देख नहीं पाया ..और मुझे आंसू भी दिखाई नहीं दिए, किंतु मैं अनुभव कर सका..
_ जब मैंने उस मकान को आखिरी बार स्पर्श किया तो ..मुझे उसकी उदासी अनुभव हुई, और मैं उसका आशीष, अलविदा अनुभव कर पाया..
_ और निश्चित रूप से यह मेरी उसके साथ अंतिम भेंट थी,
_ क्योंकि उसके बाद ..उसे वहां से हटा दिया गया.
_ पुरानी यादों की दुनियां अब भी अपनी लगती है.
_ जिस घर में हम रहे थे, उसके निशान भले ही मिट गए हों, _ खुशियों और तकलीफों के असर अब भले न दिखाई पड़ते हों ..लेकिन उनकी उपस्थिति मौके-ब-मौके उभरती रहती है.
_ बहुत तकलीफ देह होता है ये…पुरानी इमारतों में विलक्षण नशा होता है…अतीत अपनी समग्र भव्यता में खड़ा नज़र आता है…!!
_जब इनका मलबा दिखता है तो एक टीस सी उठती है…
— छूट जाना एक जगह का और छूट जाना पुरखों का घर..

_ और एक जगह का छूटना _सिर्फ़ जगह का छूटना नहीं होता..
_ जगह के साथ छूट जाते हैं कुछ दोस्त, परिचित चेहरे और उनकी आँखों की चमक, छूट जाते हैं पड़ोसी और उनकी बातचीत..
_ छूट जाता है छत से दिखता पीपल का पेड़..
_तीन चिड़ियाएँ रह जाती हैं उस पेड़ पर..
_ छूट जाती है एक पुरानी ईंट की दीवार..
_ और उस पर लगी भूरी पड़ गई काई..
_ चिट्ठियों के लिए पुराना पड़ जाता है एक पता..
_ बदल जाता है सूर्योदय का कोण..
_ छूट जाता है वहां का आकाश..
_ छूट जाता है पीछे चलता -चलता एक दोस्त.. हो उठता है भावुक..
_ आँखें पीछा करती हैं दूर तक..
_और अश्वगति से पीछे छूटता जाता है..
_ जाना पहचाना रास्ता, जगह और मकान..!!
जब हमारा घर था ना…

_ अब तुम कभी नहीं दिखोगे,
_ न वो छत न वो गलियारा
_ तुम याद आओगे..
_ जब भी तुम्हारे उत्साह को याद करेंगे पर अब उत्साह से नहीं भरेंगे,
_ तब आओगे याद..
_ याद तो आओगे..
_ घर का गलीनुमा मैन गेट को खड़ खड़ा कर खुलवाना..
_ और वो पानी कि मोटर की आवाज़ अब कहाँ ढूंढेगे..
_ याद आओगे तुम..
_ तुम नहीं हो तब भी खूब हो..
_ हमारी बातों और यादों का ज्यादा हिस्सा छेंक रखे हो..
_ तुम्हारी यादों में ही देखते हैं अपना अक्स..
_ हमारे पास इससे सुंदर कोई बात नहीं इन दिनों..
_ जब तुम थे ना……
_ जब हमारा घर था ना…जो अब नहीं है !!
बरसों बीत गए, नई दुनिया बसाए हुए,

_ फिर भी याद आते हैं वो पल, जो हमने थे वहां बिताए,
_ रम गया हूँ इस नई ज़िन्दगी में, घर-परिवार और बच्चों की ख़ुशी में,
_ फिर भी जब भी आता है, नाम उस घर का..
_ खो जाता हूँ उस घर की कहानी में..
_ कुछ पुरानी बातें कुछ पुरानी यादें, ज़िंदा हैं आज भी वो कहीं..
_ ये नाता फ़ुरसत में ही सही, कुछ पल के लिए ही सही..
_ चाहता हूँ जीना, फिर से वही ज़िन्दगी..
_ ये मेरी तमन्ना ही सही, कितना भी बसा लो अपना घर,
_ पर बहोत याद आता है वो घर !!
नहीं रहा वो घर मगर अपनेपन की बात है,
_ जहाँ भी रहें पर आज भी याद वही घर है.!!
हमारा पुराना घर जोइन्ट फैमिली की टेंशन के कारण बिक गया, लेकिन आज भी वो बहोत याद आता है..
…सही मे _जहां पर मैं छोटे से बड़ा हुआ, अगर काफी समय के बाद _ उस जगह पर जाएं तो ;; _  रोना ही आता है,

__ क्यूंकि वहां पर जाकर _ मुझे अपने बचपन की वो सारी बातें याद आ जाती हैं _ और वो एक फिल्म की तरह मेरी आंखों के सामने आ जाती हैं _ जो इतने वर्ष वहां रहे ; यह बहुत ही दर्द भरा दृश्य होता है..!!

_ उस शानदार घर को जमींदोज होते हुए देखने गया तो, सच में, दिल दुःख गया.

‘कल चमन था, आज इक सहरा हुआ, देखते ही देखते ये क्या हुआ ?’

“ज़िन्दगी के यादगार पल जो आज ख़त्म हो गए.. पर सदैव वो स्म्रतियों के रूप मे जिंदा रहेंगे…!”

पिता द्वारा कमाया हुआ और बनाया हुआ.. हमें बढाना चाहिये.. बेचना नहीं..

_ फिर चाहे इज्जत हो या दौलत..!!

बचपन कि ख्वाहिशें आज भी खत लिखती हैं मुझे,

_ शायद बेखबर इस बात से कि मैं अब इस पते पर नहीं रहता..!!

  • “बदल चुके हैं मोहल्ले के सभी कोने, मेरे बचपन का आखिरी निशां भी गया.”
पता बदल गया हमारा, न वो घर है न वो क़िस्सा हमारा..!!

_ कुछ यादें कभी खत्म नहीं होती, कुछ आंसू कभी नहीं सूखते..
_ कुछ हादसे एक सदमे की तरह होते हैं, जो मुझे नींद से चौंका कर उठा दिया करते हैं,
_ और इस अचानक हुए हादसे से उपजी अस्थिर मनोस्थिति का कोई पक्का इलाज नही,
_ कैसे बयां करूँ कि क्या होता है,
_ अचानक से उठकर उसी शिद्दत से वह सोचना जिसको न सोचने की मुझे दवाई चाहिए…!
हमारा घर उजड़ने की घटना पूरे रिश्तेदारों के लिए शर्म की बात होनी चाहिए थी,

_ पर हुई वह बस चुप्पी.. या खुसरपुसुर की बात ..
_ मेरे पिता के जाने के बाद से घर बिकने तक [2003-2021] के दौरान चार ऐसे काम आए, जिनमें उन रिश्तेदारों की बहुत जरूरत थी, लेकिन उन्होंने अपनी भूमिका नहीं निभाई.
वे चार काम थे : —
1. घर के पांच सदस्य जो कि तकलीफ में थे, उनकी समस्या का हल उन्होंने नहीं किया.
2. मेरी दुकान जो भाड़ा में दी हुई थी उसमें फचांग किया, लेकिन इन्होंने इसको नहीं रोका.
3. जब मेरी माँ गई तो केवल दो लोगों ने ही खर्च उठाया, बाकी दो ने क्यों नहीं ?
4. घर को दूसरों को बेचने से रोकना था, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया.
_ अब प्रश्न उठता है कि इस अन्याय के खिलाफ़ कोई एक्शन क्यों नहीं लिया गया..
_ जवाब है कि जलन और ईर्ष्यालु प्रवृत्ति !!
— इससे बड़ा पाप क्या होगा भला.. जब किसी का घर नष्ट कर दिया जाए,
_ यह पाप उन सभी को लगेगा, जिन्होंने गलत किया और गलत का साथ भी दिया,
_ और वे तटस्थ [neutral] होने का दिखावा कर रहे, जो मज़े ले रहे, सभी इस पाप के भागीदार होंगे..!
_ हालांकि मैंने सबको माफ़ कर दिया है, सबकुछ समय पर छोड़ दिया है,
_ समय ही न्याय करेगा, समय ही कहानी लिखेगा..
_ सब चुप हैं.. जैसे मैं कभी था ही नहीं, या जैसे मैं हूँ ही नहीं..!!
—- इतिहास गवाह है कि दुनिया में बहुत से राजा रंक बन गए,
_ बहुत से महल मिट्टी में मिल गए,
_ बहुत शक्तिशाली लोग अंत में लाचार होकर मरे..
_ कोई अमर नहीं है, कोई अजर नहीं है,
_ कोई भी स्थिति सदा नहीं रहती..
_ बस मायने रखता है कि आपने सही का साथ दिया या नहीं !!
कुछ बाते लिखी ही इसलिए गई.. ताकि लोग उन परिस्थितियों को जान-समझ पायें,
_ कि कैसे एक फ़ैसले की वजह से कितना कुछ पल भर में तबाह हो गया, खैर !..
“घर हमारा उन्हीं चिराग़ो ने जलाया”
_ हांथ जला कर हमने, जिन चिरागो को बुझने से बचाया.!
_ दुख तब और भी पाया,
_ जब घर जलने के बाद.. उन चिराग़ो को भी बुझते पाया !!
आप किसे कह रहे हैं पुराना था वो घर,

_ जिसे खरीदने और बनाने में ज़माना लगा मुझे..!!

_ दो पक्के कमरे बनाकर रहने वाले का संघर्ष भी कभी कभी बहुत बड़ा होता है.. ( उसकी मेहनत, त्याग वही बता सकता है ).

_ मुझे एक दो कमरे का फ्लैट खरीदने के लिए नाकों चने चबाने पड़ गए थे.

घर में अपनों का होना बहुत जरुरी है, _ वरना घर को कितना भी सजा लो, दीवारें कभी नहीं बोलतीं..
अपनों से ही तो मकान “घर” बन जाता है, _ अपने साथ ना रहें तो महल भी खंडहर बन जाता है.
जिसने उम्र भर रचा घर का एक एक कोना _ आज वही बागवान पड़ा है घर के एक कोने में.
सोचा था घर बना कर बैठूँगा सुकून से, _ पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला..
उड़ गये वो परिंदे घोंसला छोड़कर, _ जिनको अपना खून पिला पिला कर सींचा था..
घास के तिनके जो बेकार कूड़ा समझे जाते थे,_ चंद पक्षियों के हुनर ​​से बन गए घर !
जब से कमाना मैंने शुरू किया, _ मेरा प्यारा घर मुझसे दूर हुआ ..
पूरी दुनिया घूम लो यार, पर जो सुकून घर में मिलता है, वो कहीं भी नहीं मिलता..

“दुनिया की यात्रा करें, लेकिन ध्यान रखें कि घर सबसे अच्छा है.”

झोपड़ी में रहना सही है लेकिन, महल के लिए मेहनत ना करना ग़लत है ..!!!
सुकून चाहिए महल नहीं… महल तो हम कच्चे घर को भी बना लेंगे !!
अपने ही घर का मेहमान हूँ मैं, __ अब केवल त्योहारों में घर जाता हूँ…!!!

_ सोचा था घर बनवाकर घर पर चैन से रहूंगा, जो घर बनाया अब उसी घर में मेहमान बनकर जाना पड़ता है.

_ यही होती है एक परदेशी की जिंदगी..!!

घर नाम की जगह को इतना सुकून भरा, प्यार भरा और भरोसे भरा होना चाहिए कि पढ़ने, कमाने या दुनिया देखने निकला बच्चा बार बार वहां लौटना चाहे,

_ वर्ना तो जिसे जब जैसा बहाना, मौक़ा मिलेगा वह घर छोड़ जाएगा फिर आप रोते रहिए नए ज़माने को.!!

दुनिया में अगर कहीं सुकून मिलता हैं तो “वो है अपना घर “
घर सहनशीलता और धैर्य को सीखने की पाठशाला है.
घर क्या होता है _ ये घर मेँ पता नहीं चलता..
घर बड़े हुए लेकिन रिश्ते कम हो गए, घर न रहकर मकान हो गए..

_ घर जरूर बड़े हुए लेकिन दिल छोटे हो गए हैं और होते जा रहे हैं..!!

नए आशियाने की तलाश में कितने घरौंदे वीरान हो गए,

_ लोग अपने पुराने घरों को छोड़ गए..!!

गिरवी रक्खा अपने सारे ख्वाबों को, _

_ और इस ज़मीन पे छोटा सा घर लिया मैंने ..

जो घर बच्चों को अब पुराना लगता है, _

_ वही घर माँ – बाप को खरीदने में जमाना लगा था ..

“घर” धैर्य और समर्पण सीखने के लिए किसी प्रशिछण स्थल के समान होता है.

यहाँ तपस्या और त्याग की सर्वोत्तम शिछा मिलती है.

घर कच्चा हो या पक्का , छोटा हो या बड़ा कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता …

….अगर …. घर का माहौल ख़राब है तो बहुत फ़र्क़ पड़ता है !

सारी दुनिया बंद दरवाजे में सिमटी है, बाहर क्या है कोई आवाज ना सुनती है !

_अब त्यौहार त्यौहार नहीं लगते _ क्योंकि यहां अब घर नही मकान बसते हैं !!

जब तक घर के अंदर था, पता न चला कि धूप क्या होती है ?

जब घर से बाहर निकला, तब पता चला कि छत क्या होती है !!

दरारे पड़ गई है,,, _ मेरे घर की दीवारों में भी ,

एक वही है,,, _ जो मुझे कान लगा के सुनती है

घर छोटा हो या बड़ा हो, कोई फर्क नहीं पड़ता ;

लेकिन घर का माहौल, जरूर अच्छा होना चाहिए.

आगे आने वाला शहर कितना भी पसंदीदा क्यूँ ना हो,

पीछे छूटने वाला घर बैचैन कर ही देता है..

घर खुद का छोटा हो तो भी चलता है, यदि परिवार के सदस्यों की तुलना मे कमरें ज्यादा हो तो साफ सफाई में दिक्कत होती है और सुरक्षा की दृष्टि से भी दिक्कत होती है.
केवल वही घर खरीदें जिसकी आपको आवश्यकता है, न कि वह घर जिसे आप खरीद सकते हैं.

Buy only the home you need, not the house you can afford.

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