हमारा घर उजड़ने की घटना पूरे रिश्तेदारों के लिए शर्म की बात होनी चाहिए थी,
_ पर हुई वह बस चुप्पी.. या खुसरपुसुर की बात ..
_ मेरे पिता के जाने के बाद से घर बिकने तक [2003-2021] के दौरान चार ऐसे काम आए, जिनमें उन रिश्तेदारों की बहुत जरूरत थी, लेकिन उन्होंने अपनी भूमिका नहीं निभाई.
वे चार काम थे : —
1. घर के पांच सदस्य जो कि तकलीफ में थे, उनकी समस्या का हल उन्होंने नहीं किया.
2. मेरी दुकान जो भाड़ा में दी हुई थी उसमें फचांग किया, लेकिन इन्होंने इसको नहीं रोका.
3. जब मेरी माँ गई तो केवल दो लोगों ने ही खर्च उठाया, बाकी दो ने क्यों नहीं ?
4. घर को दूसरों को बेचने से रोकना था, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया.
_ अब प्रश्न उठता है कि इस अन्याय के खिलाफ़ कोई एक्शन क्यों नहीं लिया गया..
_ जवाब है कि जलन और ईर्ष्यालु प्रवृत्ति !!
— इससे बड़ा पाप क्या होगा भला.. जब किसी का घर नष्ट कर दिया जाए,
_ यह पाप उन सभी को लगेगा, जिन्होंने गलत किया और गलत का साथ भी दिया,
_ और वे तटस्थ [neutral] होने का दिखावा कर रहे, जो मज़े ले रहे, सभी इस पाप के भागीदार होंगे..!
_ हालांकि मैंने सबको माफ़ कर दिया है, सबकुछ समय पर छोड़ दिया है,
_ समय ही न्याय करेगा, समय ही कहानी लिखेगा..
_ सब चुप हैं.. जैसे मैं कभी था ही नहीं, या जैसे मैं हूँ ही नहीं..!!
—- इतिहास गवाह है कि दुनिया में बहुत से राजा रंक बन गए,
_ बहुत से महल मिट्टी में मिल गए,
_ बहुत शक्तिशाली लोग अंत में लाचार होकर मरे..
_ कोई अमर नहीं है, कोई अजर नहीं है,
_ कोई भी स्थिति सदा नहीं रहती..
_ बस मायने रखता है कि आपने सही का साथ दिया या नहीं !!
कुछ बाते लिखी ही इसलिए गई.. ताकि लोग उन परिस्थितियों को जान-समझ पायें,
_ कि कैसे एक फ़ैसले की वजह से कितना कुछ पल भर में तबाह हो गया, खैर !..
“घर हमारा उन्हीं चिराग़ो ने जलाया”
_ हांथ जला कर हमने, जिन चिरागो को बुझने से बचाया.!
_ दुख तब और भी पाया,
_ जब घर जलने के बाद.. उन चिराग़ो को भी बुझते पाया !!