प्रेम नगर के हम हैं पंछी, प्रेम के गीत हैं गाते.
_ ना कोई बस्ती मकान अपना, खुले गगन मंडराते.
_ ध्यान गंगा का जल हैं पीते, ज्ञान के गीत हैं गाते.
_ सुख- दुख खाली जाल बिछावे, अब नहीं धोखा खाते.
_ तेरी कृपा से सीखा हमने, मस्ती में पंख फैलाते.
_ प्रेम नगर के हम हैं पंछी, प्रेम के गीत हैं गाते.!!
ध्यान अनुभव – “प्रेम नगर का पंछी”
_ आज ध्यान की अवस्था में जैसे मैं एक सीमाओं से परे खुले आकाश का पंछी बन गया.
_ ना कोई नाम, ना पहचान — सिर्फ प्रेम की लहरें थीं जो मुझे अपने भीतर समेट रही थीं.
_ मैंने अनुभव किया कि यह जीवन एक बंधन नहीं,
_ एक अवसर है —प्रेम को जीने का, अनुभव करने का, और उड़ान भरने का.
_ ध्यान गंगा के निर्मल जल ने मेरे अंतर को धो दिया.
_ मस्तिष्क की हलचलें शांति में विलीन हो गईं.
_ एक निर्मल चेतना का स्पर्श था,
_ जहाँ न कोई डर था, न कोई इच्छा —
बस “मैं” और “वह” एक हो गए.
_ इस प्रेम नगर में… सुख-दुख अब बस दृश्य बनकर रह गए,
_ जैसे बादल आते हैं और चले जाते हैं,
परन्तु आकाश — सदा शांत, सदा निर्मल.
_ तेरी कृपा से सीखा — कैसे पंख फैलाकर उड़ना है, बिना डरे, बिना थके..
— बस प्रेम के गीत गाते हुए, मुक्त गगन में विचरते हुए.
_ मैं अब जानता हूँ —
_ मैं इस प्रेम नगर का एक पंछी हूँ,
_ जहाँ घर नहीं, लेकिन अपनापन है,
_ जहाँ उड़ान है, लेकिन प्रयास नहीं,
_ जहाँ प्रेम है, और केवल प्रेम है.