सुविचार – अपेछा- आशा – उम्मीद – उम्मीदें – 115

जब आप किसी से अपेछा नहीं रखेंगे, तो फिर आपको किसी से शिकायत भी नहीं रहेगी..

_ जो लोग शिकायत शून्य हैं, वे ही तो सहनशील हैं..!!

लोग आप से अच्छा बनने की उम्मीद तो करते हैं ;

_ ख़ुद अच्छा बनने से परहेज़ है उन्हें..!!

मसला ये नहीं कि लोग परवाह क्यों नहीं करते,

_ मुद्दा ये है कि हमें उनसे इतनी उम्मीद क्यों है !!

तुझे जैसे चलना है वैसे चल ज़िन्दगी, मैंने तो तुझसे हर उम्मीद ही छोड़ दी है !!
आशा, चाहे कितनी ही कम क्यों न हो, निराशा से बेहतर है..!!
अगर उम्मीदें दुख की वजह हैं तो जीने की वजह भी उम्मीदें ही हैं.
लोग ऐसे हैं कि एक गिलास पानी पिलाने का एहसान के बदले..

_ पूरा कुआं लेने की उम्मीद रखते हैं..!!

जब सब कुछ ठीक नहीं हो तब भी न घबराएं,

_ बस आप को पता होना चाहिए कि.. टूटी उम्मीदों से चीजों को कैसे सुलझाना है.

कुछ जगह जिंदगी में कभी नहीं भरती, खाली रहती हैं, क्योंकि आपने उन्हें स्वयं बनाया है,

_ आप उन चीजों की उम्मीद कैसे कर सकते हैँ, जिन्हें आपने दूर धकेल दिया है ?

यदि जीवन में इंसान की आवश्यकता सीमित हो और किसी अन्य से कोई उम्मीद और अपेछा न करे तो बेहद _ खुश जीवन आराम से जीया जा सकता है..!!

–उसे कोई कैसे दुखी कर सकता है, जिसकी किसी से कोई उम्मीद ही ना हो !!

उन सब चीजों को ना कहना ठीक है, जिनके साथ आप सहज नहीं हैं.

_ उन लोगों के शोर को ब्लॉक करना ठीक है, जो आपका भला नहीं करते हैं.

_ कभी कभी नकारात्मकता से खुद को अलग करना ठीक है.

_ अन्य लोगों की उम्मीदों के साथ बहुत अधिक फंस न जाएं..

_ आप स्वयं निर्णय करने के लिए स्वतंत्र हैं..!!

हमारे बुरे वक्त में जो हमें उम्मीदें देते हैं, लेकिन जब बाद में वो गैर होने का अहसास कराने लगते हैं,

_ तब उन उम्मीदों का टूटना भी स्वाभाविक है,
_ तभी हमारा दिल दुखता है, लेकिन इससे उस इंसान कोई फर्क नहीं पड़ता,
_ क्योंकि अब वो आपके साथ वैसे नहीं, जैसे कभी हुआ करता था…!

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