हमारे अंदर दूसरो के प्रति नाराजगी या शिकायतें तभी तक रहती है, जब तक हम दूसरों से उम्मीदें रख कर जीवन जीते हैं.
हम दूसरों से उम्मीदे रख कर स्वयं से बहुत दूर चले जाते हैं, औऱ जीवन हमारा खुद का न रह कर कुछ और ही चीज बन जाता है.
फिर हमारा सिस्टम हमारे खिलाफ काम करने लगता है, क्योंकि हमने अपने भीतर के सिस्टम के लिये वो नही किया जो उसके लिए जरुरी था.
जकड़नें हम खुद पैदा करते हैं अपने लिये, “दूसरे” जीवन वैसा ही जीते हैं, जैसे वह हैं, उसमें उनकी कोई गलती नही है, लेकिन हमें जीवन वैसे ही जीना चाहिए जो सही है.