सुविचार – आँख- आँखें – आँखों – नजर – नज़र – नज़रें – 125

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आँख बंद करके,  किसी की बात मानने से बेहतर है कि मुँह खोल कर बोलो और कान खोल कर समझो..
रख लो आईने हज़ार तसल्ली के लिए,, पर सच के लिए आंखें मिलानी पड़ेंगी..
जरूरतों को देखने के लिए अपनी आँखों का उपयोग करें, और उन्हें पूरा करने के लिए अपनी प्रतिभा का उपयोग करें.

Use your eyes to see the needs, and use your talents to meet them.

“दो दिखने वाली आँखों के अलावा भी _ कुदरत ने इंसान को कई आँखें दी है,

_ जरूरत इतनी ही है कि उनको खुला रखा जाये”

बहुत कुछ है जीवन में .. जो नजर आता है.. जो नज़र नहीं आता इसका मतलब ये नहीं कि वो नहीं है ..

_ उदाहरण के तौर पर हवा … और ऐसे ही हजार चीज होगी जिसे रब ने बनाया तो है जो हमें दिखाई नहीं देती.!!
सबके पास समान आंखें हैं, लेकिन सब के पास समान दृष्टिकोण नहीं..

_ बस यही बात इंसान को इंसान से अलग करती है.!!

जीवन में जब सब अच्छा ही अच्छा होता है तो हम अंधे बन जाते हैं,

_ उस वक़्त क्या ज़्यादा ज़रूरी है, वो साफ़- साफ़ नज़र नहीं आता.!!

कुछ ऐसा ख़ुद को बना लिया मैंने..

_ आँखों के आंसुओं को होठो की हँसी में छुपा लिया..!!

खाता मुंह है, झुकती आंखें हैं.

_ जिन आखों में झुकने की शर्मिंदगी हो, उन्हें खाने से डरना चाहिए.!!

जिसने दूसरों की आँखें नम की हैं, उसके हिस्से में भी कभी ना कभी वही दर्द आता है, यही कर्म का फ़ैसला होता है.!!
तर्क किए बिना किसी बात को आँखें मूंद कर मान लेना भी एक प्रकार की गुलामी है.
जीवन उसका ही सुधरेगा, जो आँख बंद होने से पहले आँख खोल लेगा.
आपकी आँखें जो देखती हैं, वह हरदम सच नहीं हो सकता.
फेर लेते हैं सब के सब नज़रें, आप जब काम के नहीं रहते.!!
वो नज़रें सलामत रहे, जिन्हें हम अच्छे नहीं लगते..!!
चेहरे पढ़ने वाला नहीं, आँखें पढ़ने वाला ढूंढो.!!
अक्सर लोग ख़ुद से नज़र मिलाने से डरते हैं,

_ क्योंकि वहां जवाब नहीं सवाल होते हैं;
_ और अगर सवाल गहरे हो जाएं, तो पूरी ज़िन्दगी हिल सकती है.
_ इसलिए दुनिया की बातों में उलझे रहना आसान है,
_ “ख़ुद को असलियत से बचाने का तरीका”
_ “लोगों ने दुनिया जीत ली, पर अपने आप से हार गए – इसलिए उनके पास जानकारी तो है, पर जीवन नहीं.!!”
दूसरों की नज़रों से खुद को मत देखो.

_ तुम्हारे पास आँखें हैं; तुम अंधे नहीं हो.
_ और तुम्हारे पास अपने आंतरिक और बाहरी जीवन के तथ्य हैं.
_ तुम्हारी अपनी आँखें ही असली “मैं” का रास्ता है.!!
“मेरी आँखें चुप हैं… पर भीतर की दृष्टि सब काली लकीरें पढ़ लेती है”

“मेरी चुप्पी मेरी ताक़त है—
मैं कहे बिना भी सब पहचान जाता हूँ”
“मुझे किसी से मिलने में कोई आपत्ति नहीं,
_ पर मैं आँखों के पर्दों में छुपी चालाकियाँ पढ़ लेता हूँ.
_ मुंह पर कुछ कह नहीं पाता, यह मेरी खामोशी है..
_ लेकिन भीतर से मैं हर काली लकीर पहचान जाता हूँ..
_ मेरी चुप्पी कमजोरी नहीं, बल्कि मेरी गहराई है—
_ जो देखती है, समझती है, और चुपचाप याद रखती है”
“मैं चुप रह जाता हूँ, पर मेरी अंतर-दृष्टि उन काली लकीरों को पहचान चुकी होती है.”

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