“दास्तान- ए – दर्द”
दर्द को जब भी मैंने पुकारा है,
दर्द ने आकर मुझे सँवारा है,
दर्द के साथ ही मेरी दोस्ती है,
दर्द के साथ ही मेरा गुजारा है !
कोई शाम जब ये रूठ जाता है,
देर रात तक जब नहीं ये आता है,
बड़ी मिन्नत से इसे फ़िर बुलाता हूँ,
अपनी दोस्ती की याद दिलाता हूँ !
दर्द ये यार मेरा पुराना है,
बरसों का हमारा याराना है,
दिल में दर्द हो तो बात बनती है,
दर्द के पहलु में रात कटती है !
दर्द किसी का अपना कर तो देखो,
दर्द की आगोश में आकर तो देखो,
दर्द ही दर्द है जब ज़माने में,
क्या बुराई है इसे अपनाने में,
दर्द के साथ मुझे अब रहने दो,
लहु बनकर रगों में बहने दो,
रौशनाई उस लहू से बनाऊँगा,
दर्द की दास्तान नई इक लिख जाऊँगा.