जैसी संगत वैसी रंगत
मनुष्य जैसी संगति करता है, जैसे वातावरण और माहौल में रहता है, जैसे विचार करता है, जैसा जैसे विचार सुनता है वैसे ही संकल्प करने लगता है, वैसा ही आचरण करने लगता है और जैसा आचरण करता है, फिर वैसा ही उसका रूप और स्वभाव बन जाता है. जिन बातों का बार-बार विचार करता है, धीरे-धीरे वैसी ही इच्छा हो जाती है, फिर उसी के अनुसार वार्ता, आचरण, कर्म और गति होती है.