हमारा पूरा जीवन भीड़ का हिस्सा बना हुआ है. विचारों की भीड़ हो या संगठनों के आदर्श की या व्यक्ति की. अधिकतर व्यक्ति की चेतना में अभिनव कुछ नहीं होता. वह एक रोडमैप बनाता है – बस भीड़ को फॉलो करने का. शिछा में बच्चे वही करते हैं, युवाओं में जिसका ज्यादा क्रेज होता है. परिवार में बच्चे पिता- माता या अपने बड़े या मित्रों को फॉलो करते हैं. यह चलना हर मामले में होता है. सवाल गलत या सही का नहीं. सवाल है कि हमारी चेतना में कुछ नया करने का भाव क्यों नहीं आता, और अगर यह नहीं आता है, तो हम सर्वश्रेष्ठ कहां से दे सकते हैं ? हम उत्कृष्ट कैसे बन सकते हैं.
जब आप किसी महान लछ्य, किसी असाधारण कल्पना से प्रेरित होते हैं तो आपके सभी विचार अपनी सीमाएं तोड़ देते हैं. आपका मस्तिष्क सीमाओं से परे निकल जाता है. आपकी चेतना प्रत्येक दिशा में विस्तृत होती है और आप खुद को एक नये और आश्चर्यजनक दुनिया में पाते हैं, जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की थी.