अहम का त्याग करके ही स्वयं को पहचाना जा सकता है.
यह एक गहनतम तथ्य है कि हम जीवन में जितना झुकेंगे उतने ही जीवंत हो सकेंगे.
रिश्तों में माधुर्य तभी रह सकता है जब हम अपने अहम को परे रख कर ग़लती स्वीकारें और माफी माँगें.
यह एक गहनतम तथ्य है कि हम जीवन में जितना झुकेंगे उतने ही जीवंत हो सकेंगे.
रिश्तों में माधुर्य तभी रह सकता है जब हम अपने अहम को परे रख कर ग़लती स्वीकारें और माफी माँगें.