क्यों न हम ठीक से चीजों को सामने रखें, उसका अँधेरा भी उजाला भी..
सोच का अँधेरा.. रात के अँधेरे से ज्यादा खतरनाक होता है..!!
अँधेरा ही एक ऐसी चीज है, जो हर आदमी की शक्ल को एक बना देती है.!!
कभी-कभी ज़िंदगी हमें अंधेरे मोड़ पर लाकर छोड़ देती है,
_ ताकि हम खुद अपनी रोशनी ढूँढना सीखें.. वहीं से नई शुरुआत होती है.!!




