सुविचार 4179

ज़िंदगी से बडा़ कोई मज़हब नहीं होता,

_ और अपने जिस्म से सगा कोई दूजा नहीं होता,
_ तो सबसे पहले ज़िंदगी की परवाह होनी चाहिये,”
“ज़िंदगी” दौड़ रही है तेज़, जाने कब थम जाएगी,,

_ शेष है जितनी “जी लीजिए” ये वापिस फ़िर न आएगी !!

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