हमें लगता है की हम पहुंच गए, दअरसल हम पहुंच कहीं नहीं रहे होते, बस सड़क बदलती रहती है.
_ घर बना भी लें तब भी घर में इतनी ताकत नहीं कि वह सड़क और यात्रा की नियति को रोक सके.
_ हर घर सड़क के लिए एक तरह का अतिक्रमण है.
_ “हर घर सड़क के बीच में ही होता है”,
_ नितांत अकेला…
_ ढेर सारे घर भी अकेले अकेले, अकेले ही होते हैं.
_ “घर कभी सड़क को रोक नहीं सकता”
_ “हमारी नियति है सड़क पर होना”।
_ “हम सब रचना के रूप में सड़क के यात्री हैं”
_ यात्री हैं यही मान लेना शुभ है, सुखद है, घर के बाशिंदे हो जाने में घोर दुःख है क्षोभ है, याद है, ढेरों फरियाद हैं.
_ फरियादी घर में बसेरा बनाकर फरियाद करने बैठता है, ले चलो.
_ राहगीर बस चलता रहता है.
_ सड़क ही घर है उसका, बशर्ते राह चलते चलते उसने घर की कामना न कर ली हो…
करते ही सारे दुःख, सारा खालीपन घर के कमरे के एक कोने में बैठ जाता है.
_ बार बार याद दिलाता है मैं हूं, यहीं हूं कहीं गया नहीं, जाऊंगा भी नहीं.
_ “सड़क होने पर दुख का कोना आसमान हो जाता है,
आसमान दुःख समेटता नहीं, कर देता है उड़न छू”
