उत्तर :- कौन क्या कहता है और क्या समझता है, इसकी फिकर ना करना, तुम तो अपने भीतर पे ध्यान देना,
अगर इससे आनन्द आ रहा है, मस्ती आ रही है, सुरा बरस रही है, तो तुम फिकर मत करना ;
—- इस संसार के पास कुछ भी नहीं है ” इतना मूल्यवान ” तुम्हें देने को,
इसलिए संसार से कोई सौदा मत करना.
A :- 08 – ओशो
उत्तर :- जब हम भीतर के स्त्रोत से जुड़ जाते हैं, तभी हमें आंनद महसूस होता है, बंद आँखों में ये सरलता से हो पाता है,
लेकिन ध्यान करते करते ऐसा होना चालू हो जाएगा कि फिर खुली आँखों में भी,
कुछ भी कार्य करते हुए भी हम भीतर के स्त्रोत से जुड़े हुए रहेंगे, और आनंदित रहेंगे.
A :- 61 – ओशो
तीनों में क्या फर्क है ?
अकेलेपन में दूसरा मौजूद रहता है, यानी कोई दूसरे की कमी खलती है.
एक बार जो इस एकांत में पहुंच गया, उससे संवाद कायम करना, उसके स्तर पर जाकर, उससे बातचीत करना बहुत मुश्किल काम है !!!
– “कौन था वो शख्स,, जो मेरी जगह जी गया “
दुख को बहोत सहेज कर रखना पड़ा हमें,
सुख तो किसी कपूर की टिकिया सा उड़ गया,
बताओ तो कौन था, वो बदनसीब शख्स, जो मेरी जगह जिया,
अब सबसे पूछता हूँ, कौन था वो शख्स, जो मेरी जगह जिया,
वो कौन था शख्स, जो मेरी जगह जी गया …
A :- 67 – ओशो
उत्तर :- मेरे भीतर जब ” मैं ” मौजूद था, तब गलतियां होंती थी, लेकिन जब से ” मैं ” गया तब से गलतियां नहीं होती,
मतलब, जब ” मैं ” मौजूद था तो जो भी सही करता तो वो भी गलत हो जाता था
मगर, जब से ” मैं ” चला गया और अब जब ” वो ” मौजूद है तो गलत होता ही नहीं
यानी अब कुछ गलत हो भी जाता है तो अंततः वो सही ही साबित होता है.
A :- 70 – ओशो
उत्तर :- आप इसे एक उदाहरण के द्वारा समझें; जैसे कोई एक आदमी को ८ नम्बर का जूता लगता है और दूसरे आदमी को भी ८ नंबर का जूता लगता है, खरीदते वक्त तो दोनों अपने नंबर का ही जूता खरीदेंगे, मगर जब दोनों इसे कुछ दिन पहनेंगे तो इनका नंबर बदल जाएगा, अब वही दोनों आदमी जिन्होंने ८ नंबर का जूता लिया था, अगर वो एक दूसरे का जूता बदल कर पहनना चाहें तो नहीं पहन सकेंगे, कारण कि पहनने के बाद दोनों के उँगलियों, अंगूठों और एड़ी ने अपने हिसाब से आकार ले लिया होता है, ठीक इसी तरह ध्यान विधि सभी को बताई तो जाती है एक तरह की, मगर सभी की उसकी सुविधा अनुसार थोड़ी- थोड़ी बदल जाती है, इसमें कोई हर्ज नहीं, बल्कि बढ़िया है.
A :- 72 – ओशो
— अब मैं अपने घर लौट आया हूँ, मेरा कोई भी काम अब तू किसी को भी निमित बना कर करवा देता है.
उत्तर :- ये प्रश्न ही गलत है, प्रश्न ये होना चाहिए कि “मैं कौन हूँ ” ? इसका जवाब ढूँढ लो तो इसका [ रब क्या है और कहाँ है ? ] भी जवाब मिल जायेगा. रब हमारे ही भीतर है, हमारी शुद्धि की अवस्था ही रब है.
— प्रश्न :– अगर संसार लीला है तो संसार में इतना दुःख क्यों है ?
उत्तर :- लीला का अर्थ है जीवन को समस्त दृष्टिकोण से देखो. लीला मतलब खेल है, इसलिए इसे खेल की तरह देखो, जिसमें हार भी है और जीत भी. इसलिए इसे ज्यादा गंभीरता से न लें. A :- 78 – ओशो
उत्तर :- हमारे अवलोकन में जब शुभ चीजें बढ़ती हैं, और जब अशुभ चीजें घटती हैं, घटने के साथ ही समाप्त भी हो जाती हैं, तो वो पुण्य है, जैसे:- करुणा, दया, प्रेम, मैत्री,
हमारे अवलोकन में जब शुभ चीजें घटती हैं, और जब अशुभ चीजें बढ़ती हैं, तो वो पाप है, जैसे :- क्रोध, लोभ, मोह, अन्धकार, हिंसा,
A :- 79 – ओशो
और जो जहाँ है, जैसा है, वहीँ सुखी है तो वो कहीं भी सुखी हो सकता है.
A :- 86 – ओशो
फिर जो होता है वह काम नहीं है, स्वांत: सुखाय है ! प्रमुदितावस्था है !! गहरे अर्थों में ध्यान है !!!
_ यह एक अस्तित्वगत सत्य है: केवल वे लोग जो अकेले होने में सक्षम हैं, वे प्यार करने, साझा करने, दूसरे व्यक्ति के सबसे गहरे केंद्र में जाने में सक्षम हैं – दूसरे पर अधिकार किए बिना, दूसरे पर निर्भर हुए बिना, और दूसरे के आदी हुए बिना.!!
वे दूसरे को पूर्ण स्वतंत्रता देते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि यदि दूसरा चला जाता है, तो वे उतने ही प्रसन्न होंगे जितने कि अभी हैं.
_ उनका सुख दूसरा नहीं ले सकता, क्योंकि वह दूसरे के द्वारा दिया नहीं जाता. ~ ओशो
अब पढ़कर कौन कहाँ पहुंचता है ये उसकी अपनी जिम्मेदारी है…
उसके जाने का कोई सवाल नहीं है _ क्योंकि ध्यान का जो आनंद है, वह किसी भी बाहर की कंडीशन पर निर्भर नहीं है.
——जो व्यक्ति ये जानता है कि, सुख, शांति, खुशी और आनन्द उसके भीतर ही है, वो हमेशा प्रसन्न और आनन्द में रहेगा ।चाहे वो एक भिखारी ही क्यों न हो।
लेकिन सामान्य आदमी जो करता है वो सच है और जो बोलता है वो झूठ है.
एक ज्ञानी आदमी भी बोलता कुछ है और करता कुछ है.
लेकिन ज्ञानी आदमी जो करता है वो झूठ है और जो बोलता है वो सच है.
—” अज्ञानी ना खुद को समझता है ! ना दूसरों को समझता है ! पर _ समझाता बहुत है !
ज्ञानी खुद को समझता है ! दूसरों को भी समझता है ! पर _ समझाता नहीं ! मौन हो जाता है !!! ” —
और जिसे पाकर लगे कि अपने को खो दिया, समझना वो और भी अपना है !
अपने तो रहते हैं भीतर, बाहर रहते सपने,,, – ओशो
आपको इसके बारे में चिंता करने की जरुरत नहीं है _ अपने जीवन को दिखावे का टुकड़ा मत बनाओ..
—” तुम वह काम करो _ जो तुम करना चाहते हो..
वही काम करना जरुरी नहीं _ जो दूसरे लोग कर रहे हैं… “—
ये फिकर ही मत करना कि लोगों का क्या मत है, _
_ लोगों के मत को देखोगे तो आप को पागल कर देंगे !
_ उस दिन से आनंद के द्वार खुल जायेंगे..
कि हम इनके जैसे, इनके रास्ते पर तूफान की तरह कब चलेंगे..
” ह्रदय आप का रहनुमा है ” – जब वह निसर्ग [ Nature ] के साथ पूरी तरह ताल मेल में है, तब आप के ह्रदय में संगीत होता है, नृत्य होता है; _ जब आप निसर्ग [ Nature ] से दूर हो जाते हैं, तब वह नृत्य बिगड़ जाता है.
__ ये संकेत है – ह्रदय की भाषा – जो आप को बताते हैं कि आप सही चल रहे हैं या गलत, आप को किसी के मार्गदर्शन की ज़रूरत नहीं रहती, आप का मार्गदर्शक आप के भीतर बैठा हुआ है !
__ ध्यान करें और लगातार परेशान करने वाली चीजों के संपर्क में रहें ; एक दिन कोई भी चीज़ परेशान करने वाली नहीं होगी, और वह बहुत खुशी का दिन होगा.!! — ओशो
” — जिसके हाथ में निर्विचार हो जाने की कला आ गई,_ सोने की कुंजी आ गई, _ जो सब ताले खोल दे..–“
_ और एक बार इस बात का रस आ जाए कि भीतर भी एक जगत है, _ तो बाहर की सब दौड़ फीकी मालूम होने लगती है _
_ फिर कोई बाहर चले भी तो भी कर्तव्यवश चलता है, वासनावश नहीं !
क्योंकि इतने सारे लोग पृथ्वी पर आते हैं और ध्यान के आनंद के बिना पृथ्वी को छोड़ देते हैं,
हमारे सच्चे अस्तित्व का आनंद, _ इसलिए कहते हैं धन्यवाद, जो आपको मिला है ; _ आप और अधिक गहराई में जाएं.
जलता ही रहता है, चुभता ही रहता है. –
_” जिसने ध्यान का रस पी लिया, _ मगन हो गया “
— ” कभी यूही …. _ खुद को खाली किया कर..
कभी यूही…. _ खुद को निखारा कर… —“
—– “””जो अपने खालीपन से राजी हो जाता है, उसका खालीपन मिट जाता है””” —–
_क्योंकि, जब आपका दिमाग सही तरीके से काम करता है, तो शरीर के दूसरे कार्य भी सुधर जाते हैं.
अगर आप सही हो _ उसके बाद भी _ कोई जाता है तो उसे जाने दो _ये बेहतर है उसके लिए भी और आपके लिए भी _ बहोत पकड़ने की आवश्यकता नहीं है ;
आप तो खुद को साफ़ करो _ उसके बाद जो मक्खी – मछरें हैँ _ दूर हो जाएंगे ; शरीर पर गंदगी रहेगी तो मक्खियां आती हैँ और मन पर गंदगी चढ़ी हुई है तो वैसे लोग ही आपके पास आयेंगे ;
हो सकता है आपके पास ज्यादा लोग न बचें, पर वो ज्यादा बेहतर है _ क्योंकि कहते हैँ ना आपको खाना नहीं मिला तो ज़हर थोड़े खा लोगे _ तो बेहतर है _ अपने आप को साफ़ करना _ उसके बाद आपके पास लोग हैँ तो ठीक _ नहीं हैँ तो ठीक है _ आपको फर्क नहीं पड़ेगा ;
_ और अगर आपको फर्क पड़ रहा है _ तो मतलब _ बहोत काम बाकी है..
_ अगर ये बातें भी तुम दूसरों से पूछते फिरोगे, _
_ तो तुम्हें अपनी ज़िन्दगी जीना नहीं आता,
_ अगर जिंदगी को थोड़ा संवार कर, सुंदर करके जीना नहीं आता तो, तुम और क्या करोगे ?
_ वह खाना चाहिए, जो परेशानी में न डाले, _ तब सो जाना चाहिए, _ जो स्वास्थ्यप्रद हो ;
_ तब उठ आना चाहिए, _ जब जिंदगी ताजी से ताजी हो, _ जब तुम गीत गा सको और नाच सको ;
_ जब सूरज जगे, जब पक्षी बोलें, जब वृक्ष उठ आएं, _ तब तुम्हारा पड़े रहना ठीक नहीं ;
_ और भोजन उतना कि शरीर पर बोझ न हो, _ और भोजन वह कि किसी को दुख न हो ;
_ सीधी सीधी बातें, इतनी सीधीबातें भी तुम तय न कर सकोगे,? यह भी कोई दूसरा तुम्हें बताएगा ?