लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने पिता से पूछा, ” इस दुनिया में कोई अमीर है, कोई गरीब. किसी का सम्मान अधिक तो किसी का कम है, ऎसा क्यों ? आखिर मनुष्य की कीमत क्या है ?
पिता कुछ देर शांत रहे फिर बोले, ” यह लोहे की छड़ देख रहे हो, इस की कीमत तुम जानते ही हो कि यह लगभग २०० रूपए की है. अगर मै इस के छोटे छोटे कील बना दूँ तो इसी छड़ की कीमत लगभग १ हजार रूपए हो जाएगी. अब तुम बताओ इसी प्रकार अगर मै इस छड़ से बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो ? “
बालक ने गणना की और बोला, ” फिर तो इस की कीमत बहुत ज्यादा हो जाएगी. “
” ठीक इसी प्रकार मनुष्य की कीमत इस बात से नहीं होती कि अभी वह क्या है, बल्कि इस बात से होती है कि वह अपने आप को क्या बना सकता है, ” पिता ने समझाया, ” अकसर हम अपनी सही कीमत आंकने में गलती कर देते हैं. हमारे जीवन में कई बार स्थितियाँ अच्छी नहीं होतीं, पर इस से हमारी कीमत कम नहीं होती.”
पिता की बातों से बालक समझ गया कि मनुष्य की कीमत क्या है.
पिता कुछ देर शांत रहे फिर बोले, ” यह लोहे की छड़ देख रहे हो, इस की कीमत तुम जानते ही हो कि यह लगभग २०० रूपए की है. अगर मै इस के छोटे छोटे कील बना दूँ तो इसी छड़ की कीमत लगभग १ हजार रूपए हो जाएगी. अब तुम बताओ इसी प्रकार अगर मै इस छड़ से बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो ? “
बालक ने गणना की और बोला, ” फिर तो इस की कीमत बहुत ज्यादा हो जाएगी. “
” ठीक इसी प्रकार मनुष्य की कीमत इस बात से नहीं होती कि अभी वह क्या है, बल्कि इस बात से होती है कि वह अपने आप को क्या बना सकता है, ” पिता ने समझाया, ” अकसर हम अपनी सही कीमत आंकने में गलती कर देते हैं. हमारे जीवन में कई बार स्थितियाँ अच्छी नहीं होतीं, पर इस से हमारी कीमत कम नहीं होती.”
पिता की बातों से बालक समझ गया कि मनुष्य की कीमत क्या है.