खुद को सजाएं

परिवार वालों की उपेछा के कारण ही बहुत लोगों की मृत्यु हो जाती है. हम इंसानों द्वारा स्वास्थ और उम्र को लेकर बहुत- सी लापरवाहियां की जाती हैं. अगर शरीर में थोड़ी भी लापरवाही हुई, तो शरीर नष्ट हो सकता है. जो लोग नौकरी से रिटायर करते हैं, उन्हें सरकार पेंशन इसलिए देती है कि वे बुढ़ापे में सुख से जी सकें. लेकिन आश्चर्य तब होता है, जब ये लोग पेंशन का पैसा अपने बच्चों को दे देते हैं और खुद चाय पीने के लिए किसी फुटपाथ की दुकान पर बैठ जाते हैं. ऐसे ही लोग असमय मरते हैं.

सलिए ऐसे उम्र गुजारने से बचिए, लोग उम्र के बढ़ते ही शौक एवं श्रृंगार छोड़ देते हैं, अपने शरीर की देखभाल करना छोड़ देते हैं. लेकिन आपको चाहिए कि अपने शरीर की पूरी तरह देखभाल करें.आप अपने मन से ये भाव निकाल दें कि आप अब बूढ़े हो रहे हैं, खाने- पीने और रंग- बिरंगे कपड़े पहनने का समय अब नहीं रहा. ऐसा विचार मन में कभी न आने दें. ऐसे ही विचारों से मनुष्य बूढ़ा होता है और असमय मर भी जाता है.

 

विश्व कवि रवि बाबू जब बूढ़े हो गए, तो उनके सारे बाल सफेद हो गए. तब भी वे हमेशा सज- धज कर बाहर निकलते थे. वे कहते थे कि हमें कोई अधिकार नहीं कि अब हम अपना कुरूप चेहरा किसी को दिखाएं. वे कहते थे कि जवानी में मनुष्य कैसे भी रहे, सुंदर लगता ही है. लेकिन बुढ़ापे में जब शरीर कमजोर हो जाए, तो सुंदर वस्त्र पहनना चाहिए. शरीर को सजा कर रखना चाहिए, ताकि बुढ़ापे के शरीर की कुरूपता ढक सके. क्योंकि कपड़े अपने लिए कम पहने जाते हैं, दूसरों की ऑंख ढकने के लिए अधिक पहने जाते हैं.

जो लोग भी अपने जीवन से प्यार करते हैं, अच्छा भोजन करते हैं और हमेशा अपने शरीर को सजाकर रखते हैं, ताकि लोग उनसे प्यार कर सकें. कुरूप व्यक्ति से कभी कोई प्यार नहीं करता. स्वयं को कुरूप बनाकर रखने का अर्थ है कि अब हम जीवन से निराश हो चुके हैं, और अब हम जीना नहीं चाहते हैं.

—-आचार्य सुदर्शन

हार न मानना ही ज़िन्दगी है

बाबा आमटे की माँ ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी, लेकिन थी बहुत बुद्धिमान. वह बहुत सी बातों को सुन्दर ढंग से समझाती थीं. एक बार उन्होंने बाबा आमटे को एक जापानी गुड़िया दी. वह गुड़िया जितनी बार गिरती थी उतनी बार उठ खड़ी होती थी. गुड़िया अपने पुत्र को दे कर उन्होंने समझाया, ” बेटा, इस गुड़िया को गिरातेगिराते तुम थक जाओगे, लेकिन यह हर बार उठ खड़ी होगी. इसी तरह जीवन में तुम्हें बारबार गिरना पड़ेगा. शान न गिरने या न हारने में नहीं है, क्योंकि जीवन में हमेशा ही सफलता हाथ नहीं आती बल्कि असली शान गिर कर तुरंत उठ खड़े होने में है. हारना, लेकिन हार न मानना ही ज़िन्दगी का दूसरा नाम है.”
इस बात को बाबा आमटे ने अच्छी तरह गाँठ बाँध ली थी और बीमारी के बावजूद कुष्ट रोगियों के लिए आश्रम चलाया.

कामयाबी का रास्ता

बालक अब्दुल के मन में नई-नई बातों को जानने की जिज्ञासा थी. उस के मोहल्ले में एक मौलवी रहते थे. एक दिन अब्दुल उन के पास गया और बोला, ” मै कामयाब बनना चाहता हूँ, कृपया बताएँ कि कामयाबी का रास्ता क्या है ?
हँसते हुए मौलवी साहब बोले, ” बेटा, मै तुम्हें कामयाबी का रास्ता बताऊंगा, पहले तुम मेरी बकरी को सामने वाले खूंटे से बांध दो, ” कह कर उन्होंने बकरी की रस्सी बालक अब्दुल को थमा दी.
वह बकरी किसी के काबू में नहीं आती थी. अतः जैसे ही अब्दुल ने रस्सी थामी कि वह छलांग लगा, हाथ से छूट गई. फिर काफी मशक्कत के बाद बालक अब्दुल ने चतुराई से काम लेते हुए तेजी से भाग कर बकरी को पैरों से पकड़ लिया. पैर पकडे जाने पर बकरी एक कदम भी नहीं भाग पाई और अब्दुल उसे खूंटे से बांधने में कामयाब हुआ.
यह देख मौलवी साहब बोले, ” शाबाश, अब्दुल , यही है कामयाबी का रास्ता. जड़ पकड़ने से पूरा पेड़ काबू में आ जाता है. अगर हम किसी समस्या की जड़ पकड़ लें, तो उस का हल आसानी से निकाल सकते हैं. “
बालक अब्दुल ने इसी सूत्र को आत्मसात कर लिया और जीवन में आगे बढ़ता गया. यह बालक था अब्दुल गफ्फार खां. जिन्हें सीमांत गांधी के नाम से भी जाना जाता है. 

मनुष्य की कीमत

लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने पिता से पूछा, ” इस दुनिया में कोई अमीर है, कोई गरीब. किसी का सम्मान अधिक तो किसी का कम है, ऎसा क्यों ? आखिर मनुष्य की कीमत क्या है ?
पिता कुछ देर शांत रहे फिर बोले, ” यह लोहे की छड़ देख रहे हो, इस की कीमत तुम जानते ही हो कि यह लगभग २०० रूपए की है. अगर मै इस के छोटे छोटे कील बना दूँ तो इसी छड़ की कीमत लगभग १ हजार रूपए हो जाएगी. अब तुम बताओ इसी प्रकार अगर मै इस छड़ से बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो ? “
बालक ने गणना की और बोला, ” फिर तो इस की कीमत बहुत ज्यादा हो जाएगी. “
” ठीक इसी प्रकार मनुष्य की कीमत इस बात से नहीं होती कि अभी वह क्या है, बल्कि इस बात से होती है कि वह अपने आप को क्या बना सकता है, ” पिता ने समझाया, ” अकसर हम अपनी सही कीमत आंकने में गलती कर देते हैं. हमारे जीवन में कई बार स्थितियाँ अच्छी नहीं होतीं, पर इस से हमारी कीमत कम नहीं होती.”
पिता की बातों से बालक समझ गया कि मनुष्य की कीमत क्या है. 

उपकार न भूलें

जीवन में हमें जिन वस्तुओं के कारण लाभ प्राप्त होता है अकसर हम उन के प्रति अच्छे भाव रख कर उन्हें बारबार इस्तेमाल करना पसन्द करते हैं, जैसे फलां रंग या कपडे पहनने से मेरा काम बनता है या अमुक रास्ते या गाडी से जाने पर सफलता मिली थी, सँभवतः ऎसी बातों और किस्सों को हम जीवनपर्यन्त याद रखते हैं, लेकिन हम तब चूक जाते हैं जब हम उन व्यक्तियों, जिन्होंने हमारी सफलताओं व उन्नति में हमारा साथ निभाया था, को भूल जाते हैं.
जिस व्यक्ति के कारण हमारा काम बनता है उस समय हम उस का धन्यवाद व आभार देना नहीं भूलते. बहुत ऊँचे ऊँचे उपनामों से उस के सम्मान में कृतज्ञता के भाव भी प्रकट करते हैं, लेकिन फिर ” रात गई बात गयी ” की तर्ज पर कुछ समय के बाद ही हम उस व्यक्ति को क्यों भूल जाते हैं ? जब हम सफलता में रंग का, रास्तों का व अन्य वस्तुओं की भूमिकाओं को याद रखते हैं तो ऐसे व्यक्तियों को जीवनपर्यन्त य़ाद न रख कर हम अपनी स्वार्थी प्रवृति दर्शाते हैं, जबकि हमें ऐसे व्यक्ति को कभी भी नहीं भूलना चाहिए, जिस की वजह से हमारा काम बना हो या हमारी सफलता में उस के योगदान का मात्र अंश भर ही हो. किसी भी हाल में किसी के उपकारों को कभी न भूलें.

संकल्प शक्ति

बात विनोबा भावे के बचपन की है. गली में खेलते बच्चों में बात चली कि उन के पूर्वजों में कौनकौन विशिष्ट व महान व्यक्ति हुए हैं.
प्रत्येक बालक अपने किसी न किसी पूर्वज का नाम बताता और उन की महानता की शेखी बघारता.
बालक विनोबा चुपचाप उन की बातें सुनता रहा. जब उस का नंबर आया तो वह कुछ न बोला, लेकिन मन ही मन उस ने दृढ संकल्प कर लिया, ” अगर मेरे पूर्वजों में से कोई महान संत नहीं बना तो क्या हुआ, मैं स्वयं ऐसा बन कर दिखाऊंगा “.
अपने इस संकल्प की सिद्धि के लिए उस ने प्रखर पुरूषार्थ शुरू कर दिया और लग गया इस की सिद्धि में. यही बालक आगे चल कर महान संत विनोबा भावे के नाम से प्रसिद्ध हुआ. 
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