“”चमकीले पॉलिश्ड लोग””
_ इनके पास तमाम विमर्श होते हैं, तमाम बातें जिनमें दुनिया भर का साहित्य होता है, सिनेमा होता है, कला होती है और होते हैं तमाम व्यंजनों, शराबों की बातें..
_ इनका पहनावा, इनके चलने फिरने, उठने बैठने के ढंग बेहद नफीस होते हैं और इनकी दोस्तियां बड़े और सम्मानित लोगों से होती हैं..
_ वह नाम जो आम नहीं ख़ास होते हैं.. उनके साथ इनका घरदारी का रिश्ता होता है,
_ वह चेहरे जो पेज थ्री पर दिखते हैं.. उनके साथ इनके याराने होते हैं..
_ कैसी झिलमिल सी हँसी होती इनकी, कैसा सुबुक सा रंग पहनते ये लोग..
_ कैसी तो क्राकरी, कैसी तो सजावट, कैसी तो कपड़ों की क्रीज होती इनकी….
_ इन्हें सुबह देखो तो ये सूरज से दमकते दिखते और सांझ में देखो तो सितारों से चमकते लगते.. इनमें आभा है, क्लास है, ग्रेस है..
_ इनकी दोस्तियों के लिए वजहें होनी चाहिए दुश्मनियां भले बेवजह हों इनकी..
_ इनका एक मजबूत इनर सर्कल होता है जिसको भेदा नहीं जा सकता
_ भले उसके बाहर खड़े होकर इन्हें देख देख मुग्ध हुआ जा सकता है, ताली बजाई जा सकती है, घबराया जा सकता है.
_ इनके साथ होने, इन्हें छूने, इनका दोस्त कहलाने के लिए बहुत सारे लोग प्रयासरत रहते हैं – पर यह नाक पर मक्खी नहीं बैठने देते..
_ यह हर जगह दिखेंगे वह चाहे सोशल मीडिया हो, चाहे साहित्यिक कार्यक्रम या कि सांस्कृतिक कार्यक्रम हो..
_ इनके गिर्द भीड़ होती है फॉलोअर की, प्रशंसकों की और एक दृष्टि अनुकम्पा की चाहने वालों की..
_ यह मृदुभाषी होते, मितभाषी होते हैं..एक पल यूं तपाक से मिलेंगे.. जैसे आप बचपन के बिछड़े सखा हों..
_ दूसरे पल यूं उकताए दिखेंगे.. जैसे आपने कुछ कीमती चीज मांग ली हो..
_ यह चमकते पॉलिश्ड लोग स्त्री भी हो सकती हैं और पुरुष भी..
_ यह जितना बोलकर हर्ट नहीं करते.. उतना अपनी सेलेक्टेड चुप्पियों से वार करते हैं..
_ आम लोगों को इनसे एक सुरक्षित दूरी बनाकर रखनी चाहिए..
_ क्योंकि सितारे दूर से ही भले लगते हैं.. वह हथेली पर आते ही अंगारे बन जाते हैं..
_ मेरा ठीक है.. मैं खुद में ही डूबा रहता हूं, दुनिया के नज़ारे मेरे लिए अर्थहीन हैं..!!
– Mamta Singh
सौंदर्यबोध के लिए मन की रईसी चाहिए,
_ जब जीवन में सादगी हो, उल्लास हो, उत्सुकता हो, प्रकृति से साहचर्य हो तथा कलाकारों की सुहबत हो तभी सौंदर्यबोध पनप सकता है…
_ पहले जनजीवन में सादगी थी और सादगी का सौंदर्य था..मेहनत थी और उससे उपजा सुख था..
_ कच्ची ज़मीन को लीपकर और दीवारों को तालाब की चिकनी मिट्टी से पोतकर घर चमकाए जाते थे..
_ आले, ताखों के कटाव में ग़ज़ब का सौंदर्य होता था और खिड़की-दरवाज़ों की नक्काशी मोहक…
_ अब पक्के मकानों में वॉल पुट्टी से चिकनी दीवारों पर महंगे पेंट और प्लाई के डिजाइनर दरवाज़ों को देखकर मन में अजीब सी अरुचि उत्पन्न होती है..
_ तिसपर रही सही कसर प्लास्टिक के फूलों से पूरी हो जाती है..
_ अपने आसपास देखता हूँ तो अधिकारी, अध्यापक, व्यापारी, नेता सब दिखते हैं..
_ पर कोई चित्रकार, संगीतकार, नर्तक, मूर्तिकार नहीं दिखता…जो लेखक हैं उन्हें कोई नहीं जानता…
_ इतनी बड़ी जनसंख्या में कलाओं के प्रति उपेक्षा और मानसिक दरिद्रता के ही कारण कोई कलाकार नहीं उपजता..
_ हालांकि बड़े से बड़े रईस, बाहुबली, राजे महाराजे अभी भी शान से यहाँ पूजे जाते हैं.!!
– Mamta Singh