गीता हूँ कुरआन हूँ मैं ; मुझको पढ़ इंसान हूँ मैं
ज़िन्दा हूँ सच बोल के भी ; देख के ख़ुद हैरान हूँ मैं
इतनी मुश्किल दुनिया में ; क्यूँ इतना आसान हूँ मैं
चेहरों के इस जंगल में ; खोई हुई पहचान हूँ मैं
खूब हूँ वाकिफ़ दुनिया से ; बस खुद से अनजान हूँ मैं