सुविचार – पुरुष – मर्द – 032

पुरुषों का जीवन परिवार और काम-धंधे में संतुलन बनाये रखने में ही बीत जाता है…
पुरुषों का जीवन भी उतना संघर्ष से भरा होता हैं जितना की एक स्त्री का,

आप शायद समझ इसलिए नहीं पाते कि वो कभी गिनवाते नही…

स्त्री होना कठिन है तो पुरुष होना भी कहाँ आसान है, सच्चाई यही है कि

_ जिसको दर्द होता है वही मर्द होता है..

पुरुष का सम्मान करना सीखा नहीं समाज ने,

जबकि पुरूष बहुत कुछ करके परिवार को सहेजता है..

तुम मर्द की मोहब्बत की बात करते हो…

मर्द परिवार, बीवी, बच्चों की रोटी की खातिर, दर दर भटकता रहता है..

पुरुष के लिए यह स्वाभाविक हो जाता है की वह रोते वक्त अपनी आँखों से बहने वाली आँसुओ का कतरा-कतरा हिसाब रखे…

यह मोती समाज या गैरों के लिए मोल हो या न हो…. यह स्वयं के लिए विशिष्ट ऊर्जा का ताप है _ जो जीवन को एक राजा के भाँति जीने को प्रेरित करता है….!!!!

जब जवान हुआ होगा तो पहले मां-बाप का सहारा बना होगा,

_फिर बहन-भाइयों के लिए दर्द बर्दाश्त करता रहा होगा,
_फिर जवानी भर बीवी की जरूरियात पूरी करने के लिए ज़माने के सितम बरदाश्त करता रहा होगा..
..और अब बच्चों के लिए अपनी हड्डियां गला रहा है..!!
_बहन-भाई अब कहते होंगे कि, उसने हमारे लिए किया ही क्या है.
_बीवी कहती होगी, मेरी तो किस्मत ही खराब थी, जो इनसे शादी हो गई,
_और बच्चे कहते होंगे, पापा जी आप कोई ढंग का काम कर लेते तो, आज हम भी मजे में होते..
_यही है मर्द की ज़िंदगी है😢उफ़ ये जिन्दगी..
” पुरुष “

तुम इतने सहनशील कैसे हो सकते हो…
क्या तुमको स्वयं को खो देने का डर नहीं होता..
तुम कठोर बन जाते हो..
और वही कठोरता तुम्हारी पहचान..
कितना लिखा जाता है तुमपर,
कभी तुम्हारे प्रेम से भरे हृदय के बारे में कोई क्यों नहीं लिखता..
एक पिता, एक बेटा, एक पति, एक भाई और भी रिश्ते …
जिनको तुम संभालते फिरते हो..
हर किसी की इच्छा पूरी करते हो..
क्या तुम्हारा मन नहीं होता कि कभी तुम भी नए कपड़े खरीद लो..
हर बार क्यों ये कह के निकल जाते हो की तुम लोग ले लो मेरे पास है
एक जोड़ी मोजे लेने के लिए दस दिन जोड़ घटाना करते हो
क्या हो तुम पुरुष…
हमेशा दूसरो को…आगे रखते हो
और खुद दब जाते हो
तुम्हारा संयम कभी विचलित नहीं होता..
तुम्हारी इच्छाएं हर बार सबसे अंत में आती है, कभी कभी तो आती ही नहीं
तुम्हारे दुःख कोई समझ नहीं पाता
या कहो की कभी तुम जताते ही नहीं की कोई दुःख भी है तुमको
बस…परिवार परिवार परिवार..
पुरुष क्या हो तुम…
हाथ उठाये तो -> बेशर्म
चुप रहे तो –> डरपोक
घर से बाहर रहे तो –> आवारा
घर में रहे तो –> घर कूकड़ा
बच्चों को डाँटे तो –> ज़ालिम
ना डाँटे तो –> लापरवाह
माँ की माने तो –> मावडियो
बीवी की माने तो –> जोरु का गुलाम
बीवी को
नौकरी करने से रोके तो –> शक्की
बीवी को नौकरी करने दे तो –>
बीवी की कमाई खाने वाला
पूरी ज़िंदगी समझौता, त्याग और
संघर्ष में बिताने के बावजूद
वह अपने लिये कुछ नहीं चाहता.
इसलिये … हर एक पुरुष की
हमेशा इज़्ज़त करें , क्योंकि
❗ हर एक पुरुष में ❗
बेटा, भाई, पति, दामाद और
पिता हो सकता है,
जिसका जीवन
हमेशा मुश्किलों से भरा हुआ है.
मजाक नहीं पुरुष बनना…

पूरा जीवन तुम्हारे मुस्कराहट के लिए लड़ता रहता है वो बाप हो भाई हो या पति हो ….

उम्र से छोटा हूं महोदय, पर 22 की आयु में ही समझ गया हूं इतनी आसान नहीं है…

छोटी सी नौकरी खर्चा इतना सारा…

पापा के अरमान मां की मुस्कान घर के छोटे मोटे समान,

दूसरे महीने का बिजली का बिल पहले महीने सिलेंडर का रोना …

मां की साड़ी बाप की दवाई … चार दिन की महफिल सैलरी आने पर फिर वही उलटी गिनती…

सपने हजारों हकीकत कुछ और ही कहती है … सब खुश रहे बस इसी लिए लड़ना पड़ता है..

नहीं तो मजाल कोई आंख उठा के भी देख सके… बस खुद की एक आवाज खुद का शोर खुद की लड़ाई..

बेटा हूं भाई हूं धीरे धीरे समझ रहा हूं इतनी आसान तो नहीं ये जिन्दगी … 

कौन है पुरुष who is a male

¤ रब की ऐसी रचना जो बचपन से ही त्याग
और समझौता करना सीखता है ।
¤ वह अपने चॉकलेटस का त्याग करता है बहन के
लिये ।
¤ वह अपने सपनो का त्याग कर माता-
पिता की खुशी के लिये उनके अनुसार कैरियर
चुनता है।
¤ वह अपनी पूरी पॉकेट मनी गर्ल फ़्रेंड के लिये
गिफ़्ट खरीदने में लगाता है ।
¤ वह अपनी पूरी जवानी बीवी-बच्चों के लिये
कमाने में लगाता है ।
¤ वह अपना भविष्य बनाने के लिये लोन लेता है
और बाकी की ज़िंदगी उस लोन को चुकाने में
लगाता है ।
¤ इन सबके बावजुद वह पूरी ज़िंदगी पत्नी,
माँ और बॉस से डांट सुनने में लगाता है ।
¤ पूरी ज़िंदगी पत्नी, माँ, बॉस और सास उस पर
कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं ।
¤ उसकी पूरी ज़िंदगी दुसरो के लिये ही बीतती है
और बेचारा पुरुष
~~~~~~~~~~
¤ बीवी पर हाथ उठाये तो “बेशर्म” ।
¤ बीवी से मार खाये तो “बुजदिल” ।
¤ बीवी को किसी और के साथ देख कर कुछ कहे
तो “शक्की” ।
¤ चुप रहे तो “डरपोक” ।
¤ घर से बाहर रहे तो “आवारा” ।
¤ घर में रहे तो “नाकारा” ।
¤ बच्चों को डांटे तो “ज़ालिम” ।
¤ ना डांटे तो “लापरवाह” ।
¤ बीवी को नौकरी करने से रोके तो “शक्की” ।
¤ बीवी को नौकरी करने दे तो बिवी की “कमाई
खाने वाला” ।
¤ माँ की माने तो “चम्मचा” ।
¤ बीवी की माने तो “जोरु का गुलाम”।
पूरी ज़िंदगी समझौता, त्याग और संघर्ष में
बिताने के बावजुद वह अपने लिये कुछ
नहीं चाहता ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
इसलिये पुरुष की हमेशा इज़्ज़त करें ।
पुरुष, बेटा, भाई, बॉय फ़्रैंड, पति, दामाद,
पिता हो सकता है, जिसका जीवन
हमेशा मुश्किलों से भरा हुआ है ।
” हाँ ये पुरुष है “

माना ,,,,माना की इनकी आँखों में नमी नहीं होती
पर इनके दिल में भी जज्बातों की कमी नहीं होती
हाँ ये पुरुष है,, प्यार जताने का इनका अलग ही तरीका होता है
कभी डाँटते हैं, कभी गुस्सा करते हैं, कभी हुक्म चालते हैं, कभी कभी रौब भी जमाते हैं
सीधे सीधे कोई बात ये बताते नहीं, फ़िक्र हमारी सबसे ज्यादा करते हैं
पर प्यार से कभी जताते नहीं,,,,हाँ ये पुरुष है
दफ्तर और घर को लम्बी उम्र तक बैलेंस करते हैं
हालातों से ये भी लड़ते हैं, कभी माँ को कह नहीं पाते, कभी बीवी को कहना नहीं चाहते
और नाराजगी दोनों से ही सहते रहते हैं,
वैसे तो ये निडर है, पर रिश्तों को खोने के डर से अक्सर ये डरते हैं,,, हाँ ये पुरुष है
बातों में सख्ती, कांधों में मजबूती, और सीना फौलादी रखते हैं
पर आँगन से जब उठती है डोली, सबसे ज्यादा यही रोते हैं,,, हाँ ये पुरुष है
बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक की जिम्मेदारियां ये उठाते हैं
ख्वाहिसों को खुद की ये कफ़न उढ़ाकर, पूरी जवानी ये जलाते हैं,,,हाँ ये पुरुष है
जब भी कोई मुसीबत आती है, परिवार से पहले इनसे टकराती है
अरे कुछ नहीं होगा, चिंता छोड़ो, सो जाओ , मैं हूँ ना, कह कर सबको सुलाते हैं
और फिर वही चिंता में खुद को पूरी रात जगाते हैं,,,हाँ ये पुरुष है
जिंदगी भर परिवार के लिए जीते हैं, आधी से ज्यादा जिंदगी घर के बाहर ये जीते हैं
लोन के कर्ज और सामजिक फ़र्ज़ में, एक उम्र गुजर जाती है
खुद के लिए ये भी कहाँ लगातार जीते हैं
पिता पति भाई या दोस्त, इसका हर रूप निराला है
कभी ना कभी किसी ना किसी ने हमें हर वक़्त हरदम संभाला
हाँ ये सच है की इंसान को जन्म देती है औरत
पर इनके बिना क्या वजूद हमारा है
” हाँ ये पुरुष है “
मर्दों के जन्म पे खुशियां तो बहुत मनाई जाती है,

लेकिन ज़िन्दगी औरतों की खुशामदी में ही गुजरती है,
बहनों की पढ़ाई तो कभी उनकी शादी का भार,
कभी बीबी की जरूरतें तो कभी बच्चों की बात,
फिर ममता भरी मां के आदेशों का भी सम्मान,
सभी का ख्याल रखते-रखते खुद टूट जाता है,
घर से दूर जिन्दगी बनवास में गुज़ार देता है,
दिनभर मेहनत मजदूरी रात में चिंता में सोता है,
कमाते-कमाते जवानी में ही उम्र ढल जाती है,
फिर भी जरूरतें कहां सबकी पूरी हो पाती है,
मर्दों की जिंदगी यूंही खुशामदी में गुज़र जाती है,
संघर्षों से भरी ये दुनिया में वह चैन कहां पाता है,
गमों के बादल ओढ़ आह् तक नहीं भरता है,
लाखों दर्द छुपा सीने में चुपचाप रह जाता है,
शिकस्त चेहरे पे कभी भी नहीं आने देता है,
मुश्किलों में भी सबके सामने मुस्कुरा लेता है,
मर्दों की जिंदगी यूंही खुशामदी में गुज़र जाती है !
मर्दों की जिंदगी यूंही खुशामदी में गुज़र जाती है !
कहना जितना आसान तुम पुरुष हो,

मगर पुरुष होना कहाँ आसान है !
पुरुष के सिर पर है ज़िम्मेदारी सारी,
पत्नी मेरा हक़ है तुम पर,
माँ कहती मेरे दुध का क़र्ज़ है तुम पर !
बच्चे रोज़ नई नई फ़रमाइश करते हैं !
पत्नी, बच्चों, माँ को खुश करने में गुज़री ज़िंदगी सारी !!
कहना जितना आसान तुम पुरुष हो,
मगर पुरुष होना कहाँ आसान हैं !
हम औरते बात बात मे रो देती हैं,
कहती है तुम क्या जानो दर्द क्या होते है !
पुरुष भी प्रेम का सागर है कठोर नही होते !
बस अपनी भावनाओं को हर किसी के आगे व्यक्त नहीं करते !!
कहना जितना आसान तुम पुरुष हो,
मगर पुरुष होना कहाँ आसान है !
नारी तुम्हारे चहरे पर जो मेकअप है,
ये तुम्हारी पति की दिन भर की मेहनत हैं !
घर के चूल्हे जलाने से लेकर बच्चों की कॉपी किताब,
माता पिता की दवा तक सिर्फ़ पुरुष के सिर पर भार है !!
कहना जितना आसान तुम पुरुष हो,
मगर पुरुष होना कहाँ आसान है !

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