आप शायद समझ इसलिए नहीं पाते कि वो कभी गिनवाते नही…
_ जिसको दर्द होता है वही मर्द होता है..
_ जबकि पुरूष बहुत कुछ करके परिवार को सहेजता है..
_ मैं कैसे भी रहूं पर मेरा परिवार सुकून से रहे !!
मर्द परिवार, बीवी, बच्चों की रोटी की खातिर, दर दर भटकता रहता है..
_ जिस पर सारी दुनिया की जिम्मेदारियां रेंग कर ही सही, चढ़ ही जाती हैं..!!
यह मोती समाज या गैरों के लिए मोल हो या न हो…. यह स्वयं के लिए विशिष्ट ऊर्जा का ताप है _ जो जीवन को एक राजा के भाँति जीने को प्रेरित करता है….!!!!
पूरा जीवन तुम्हारे मुस्कराहट के लिए लड़ता रहता है वो बाप हो भाई हो या पति हो ….
उम्र से छोटा हूं महोदय, पर 22 की आयु में ही समझ गया हूं इतनी आसान नहीं है…
छोटी सी नौकरी खर्चा इतना सारा…
पापा के अरमान मां की मुस्कान घर के छोटे मोटे समान,
दूसरे महीने का बिजली का बिल पहले महीने सिलेंडर का रोना …
मां की साड़ी बाप की दवाई … चार दिन की महफिल सैलरी आने पर फिर वही उलटी गिनती…
सपने हजारों हकीकत कुछ और ही कहती है … सब खुश रहे बस इसी लिए लड़ना पड़ता है..
नहीं तो मजाल कोई आंख उठा के भी देख सके… बस खुद की एक आवाज खुद का शोर खुद की लड़ाई..
बेटा हूं भाई हूं धीरे धीरे समझ रहा हूं इतनी आसान तो नहीं ये जिन्दगी …