सुविचार – नारी – स्त्री – महिला – औरत – 033

किसी दिन ऐसी लड़कियां और महिलाएं होंगी जिनके नाम का मतलब केवल पुरुष के विपरीत नहीं होगा,

_ बल्कि अपने आप में कुछ ऐसा होगा, जो किसी पूरक और सीमा के बारे में नहीं, बल्कि केवल जीवन और वास्तविकता के बारे में सोचता है: “महिला इंसान” ~ Rainer Maria Rilke

एक स्त्री जो अपने लिए कुछ नहीं मांगती, वह सब कुछ पाने की हकदार है.
ये दुनिया चतुर-चालाकों-ठगों-धूर्तों से और चालबाजों भरी पड़ी है,

_इसलिए लड़की और महिला को भी आत्मनिर्भर होना जरुरी है..!!

कुटिलता को लिंग आधारित नहीं किया जा सकता, स्त्री को भी सामान्य इंसान माना जाना चाहिए

_ जिस दिन उन्हें स्त्री नहीं इंसान मात्र मानकर वही पॉवर, वही माहौल, वही समाज मिलेगा ..जो पुरुषों को मिला हुआ है..
_ तो वह भी वीरता/कायरता..प्रेम/घृणा…क्रूरता/संवेदनशीलता ..बुद्धिमत्ता/मूर्खता सबमें पुरुषों जैसी ही होंगी, उनसे अलग नहीं..
_ उन्हें मनुष्य मात्र समझो तो उनके किसी भी कदम पर हैरानी नहीं होगी.!!
कोई भी लड़की ये नही चाहेगी की बड़ी होकर वो लोगो के झूठे बर्तन धोए सारी उम्र और किचन में लगी रहे दिन रात.. _ ऐसा बोरिंग जीवन कोई क्यों चुनेगा ,भविष्य का ??

जो काम मा करती है सारी उम्र ,वो एक कूक भी कर सकता है, _ न जाने कितनी पढ़ी लिखी ओरतो का जीवन किचन में ही घिस जाता है.
_अन्याय होता है उन स्त्रयों के साथ जो इतनी तपस्या करके पढ़ाई करती है ओर फिर विवाह के बाद दोयम दर्जे की रह जाती है.
_ पूरी संभावना तो यही है कि वो पुरुष से ज्यादा कमा सकती है.
_ पितृसत्ता बचपन से ही मासूम ह्रदय में बैठा दी जाती है कि पैसे सिर्फ पुरूष कमाएगा और ओरत सिर्फ घर की चार दिवारी में सीमित है ,त्याग की मूर्ति है ,संस्कार ,इज्जत है घर की और पुरुष आजीवन आवारा बैल !
बाप वहां तो रोटी बना सकता है जहां पैसे मिले ; बड़े बड़े होटल में कुक बन जाएगा, पर घर पर अनपेड रोटी नही बनाएगा.
ये दोहरी मानसिकता तभी बदलेगी जब बच्चो का बचपन मे ब्रेनवाश करना बंद होगा.
ऐसी कविता ,कहानी बन्द होनी चाहिए, जो लिंग के आधार पर कार्यों का बंटवारा करे !
कार्य का निर्धारण क्षमता और योग्यता पर होना चाहिए, न कि स्त्री और पुरुष देखकर !!
आदमी औरत को नहीं छोड़ता क्योंकि उसे घर संभालने वाली, रोटी बनाने वाली चाहिए.
_ औरत अब अपमानित होने की बजाय आदमी को छोड़ना बेहतर समझती है,
_ क्योंकि अब उसे पैसा कमाना आ गया है.
_ अब वो अपमान क्यों बर्दाश्त करे ?
_ इज़्ज़त से साथ रहना है तो रह, वरना चलता बन._साफ़ कहना, सुखी रहना..!!
एक दिन ज़रूर महिलाएं रोने धोने,गंडा ताबीज धागा मन्नत की जगह पति को छोड़ देंगी.
_ अपने मज़बूत निर्णय लेंगी, आत्मनिर्भर बनेंगी, संघर्ष करेंगी..
_ मगर दो रोटी, एक छत, दो वस्त्रों के लिए पति का ज़ुल्म ग़ैरबराबरी बेवफाई हिंसा गाली बर्दाश्त नहीं करेंगी.
एक बुद्धिमान [intelligent], बौद्धिक [intellectual] महिला प्यार में नहीं डूबती.
_ उसकी प्राथमिकता उसकी महत्वाकांक्षाएं हैं, पुरुष नहीं.
हर स्त्री का हाथ हवा में तना हुआ होना चाहिए… चाहे खेल हो या कोई क्षेत्र . बाँहें खोलो और आकाश भर लो ….
_ उठो लड़कियों उठो… फैल जाओ दसो दिशाओं में. ज़मीन अपनी है… डटी रहो और आकाश फ़तह कर लो..!!
गुलामी ऐसी ही होती है. इससे निकलने का साहस तभी आ सकता है ..जब महिलाये अपने पैरों पर खड़ी हों और अपने विचारों में सुदृढ़ हों.
सिर्फ सौन्दर्य के लिए इतनी जागरूकता..

_लड़कियों- महिलाओं की दूसरी कई योग्यता को कम कर रही है..!!
मायका साथ न दे तो कोई बेचारी नही होती.

पति तलाक दे तो व्यक्तित्व में कोई कमी नही होती.
सब साथ छोड़ दे, तो भी अनाथ नही होती स्त्री.
खुद कमाओ, खुद की शक्तियों को जगाओ, अपने अस्तित्व को चुनोती दो और शेरनी की तरह दहाड़ो..
ये घिसे पिटे डायलॉग बाजी बन्द हो जानी चाहिए अब, जबकि आज इतने अवसर है खुद के पैरों पर खड़े होने के.!!
अपनी कमजोरी और आलस को अपने दिन-हीन होकर sympathy मत बटोरो.
समाज को और सिस्टम को अक्सर कमजोर लोग कोसते रहते हैं.
बहादुर तो अक्सर सिस्टम को चुनोती देकर उसे बदलने का साहस दिखाते है.
मुझे पर्सनली बहुत बकवास लगती है किसी हारे हुए व्यक्ति की पोस्ट !!
मैं चुनोती दे सकता हूं, अकेले होकर भी तुम बहोत कुछ कर सकती हो ; बस शर्त की ईमानदार हो अपनी इच्छा के प्रति..!
जो स्वतन्त्रता मांगकर ली जाए, उसका मूल्य ही कितना होगा ?
“स्वतन्त्र होना हर व्यक्ति का जन्म सिद्ध अधिकार है.”
मजबूर नही हो तुम सब कुछ सहने को, बस स्वयम की खुशियों और आजादी को लेकर ईमानदार नहीं हो.
नदियों में और स्त्रियों में इतनी समानता देखी है ;

_ पत्थर किसी के भी जीवन में हों __ साथ देना उनका… कभी नहीं छोड़ती..

“माहौल के हिसाब से ख़ुद को ढाल लेने की जैसी खूबी महिलाओं में होती है..
..वो पुरुष को हासिल नहीं है.”
मैं नारी… हर वक्त अपने रिश्तों के लिए झुक जाती हुं,

गलती हो हमारी या न… हो _ बस सभी को मनाने के लिए झुक… जाती हुं..

चिड़ियां होती हैं लड़कियां _इनके पर नहीं होते..

_ ससुराल होते हैं ..मायके होते हैं ..घर नहीं होते..!!

” नारी के बिना घर बिना मवेशियों के खलिहान के समान है “
एक शब्द हैं… पितृसत्ता… इसका अर्थ कतई वह नहीं जिस अर्थ में इसे प्रयुक्त किया जाता है.

_ पितृसत्ता स्त्री पर ज़ुल्म ढा रही है, स्त्री पितृसत्ता का दंश भोग रही है, पितृसत्ता के कारण स्त्री गुलाम है,
_ पितृसत्ता अपनी हुकूमत, संकीर्ण दृष्टिकोण के कारण स्त्री को उसके अधिकारों से वंचित किए है, आदि आदि..
_ पितृसत्ता यानी पिता की सत्ता, पिता का वर्चस्व, पिता द्वारा प्रदत्त संरक्षण, पिता के साये में सुरक्षित रहते हम…
_ हममें से कितने लोग हैं जो यह चाहेंगे कि हमारे पिता की सत्ता खत्म हो जाए ?
_ कोई नहीं..
_ इसलिए मेरा सोचना है कि हम पितृसत्ता शब्द का गलत प्रयोग करते हैं.
_ जिस नफ़रत ने पितृसत्ता शब्द को गढ़ा है, उसका प्रयोजन पितृसत्ता से न होकर पुरुषसत्ता से है,
_ अतः शब्द के गलत प्रयोग से बचा जाए और सही शब्द पुरुषसत्ता का प्रयोग प्रचलन में लाया जाए.
क्या कभी आपने अपने घर की औरतों से सुबह शाम सलाम दुआ की है, क्या आपने कभी उनसे पूछा है कि कैसी हो आप.

_ वे हम लोगों की परवाह में अपनी आंखों, दिल गुर्दा सब घिस देती हैं..

_ क्या कभी आपने अपने घर की औरत से पूछा है कि वो परेशान तो नहीं, अगर परेशान हैं तो क्यों हैं.

_ अरे प्यारे प्यारे भाईयो, दोस्तों और शुभचिंतकों आप सब हमारी चिंता में अपने दिल और दिमाग पर बोझ ना डालें.

_ आजकर वैसे भी दिल का कोई भरोसा है नहीं कि कब रुक जाए.

_ तो ऐसे में मेहरबान, कदरदान, साहिबाना, पानदान अपने घर की औरतों पर ध्यान दें,

_ उनकी परवाह करें और खुद खुश रहेंगे और वो भी खुश रहेंगी..!!

नारी, तुम किसी से कम नहीं हो,

ईश्वर की किसी अद्भुत रचना से कम नहीं हो।
अलग अलग किरदारों को जी पाना,
हर किसी के बस का खेल नहीं है।
समय की जरूरत के अनुसार,
हर माहौल, हर परिस्थिति में ढल जाना,
तुम्हारी इस खूबी का कोई मेल नहीं है।
कभी बहन, कभी भाभी, कभी अर्धांगिनी, कभी मां,
नारी के हर रूप को इतनी बखूबी निभाना,
किसी करिश्माई चमत्कार से कम नहीं है।
हमारे अंतर्मन का आधार, घर की जान हो तुम ,
श्रद्धा हो, आदर्श हो, हमारा सम्मान हो तुम,
हर बुरे वक्त को तुमने बखूबी झेला है,
परिवार की हर बड़ी मुसीबत को पीछे धकेला है।
हर मुश्किल का समाधान हो तुम,
चट्टान हो तुम, हमारा सत सत प्रणाम हो तुम ।।
।। पीके ।।
स्त्री, माननीय है :-

जब वो मांग में सिंदूर आते ही लड़की से औरत बन जाती है।
जब वो शादी के तुरंत बाद दीदी से आंटी बन जाती है जबकि उसका पति दो बच्चों के बाद भी भैया ही बना रहता है
जब शादी की अगली सुबह बेटे को आराम करने दिया जाता है और उसे रसोई में प्रवेश मिल जाता है ;
सबकी पसंद का खाना बना के खिलाओ, अपनी पसंद का कोई पूछेने वाला नही.
जब उसकी हर ग़लती भी उसकी और उसके पति की हर ग़लती भी उसी की ग़लती कहलाती है.
जब उसका शादी से बाहर का आकर्षण उसको धोखे बाज़ बना देता है और उसके पति का आकर्षण उसके प्यार की कमी कहलाता है.
जब मायके आने के लिए किसी की इजाजत जरूरी हो जाती है.
जब मायके की यादों की उदासी को उसके काम ना करने का बहाना करार दिया जाता है.
जब जरूरत पड़ने पर ना वो पति से पैसे मांग पाती है और ना ही पिता से.
जब उसकी माँ उसे समझौता करने को कहती रहती है और अपनी सफल शादी की दुहाई देती रहती है.
जब ऑफिस से थक कर आने के बाद कोई पानी तक नहीं पूछता है.
जब रात को पति के बाद सोती है और सुबह पति से पहले उठती है.
जब अपने सपने/ख्वाहिशें भूल जाती है और कोई पुरानी सहेली उसको याद दिलाती है.
शादी सभी के लिए उतनी मीठी नहीं होती जितनी नज़र आती है, महिलाओं के लिए आज भी जीवन मुश्किल है.
वो जो महिला को आप रोज़ देखते है और उससे उसकी आँखों के नीचे काले घेरे होने का कारण पूछते है, मत पूछिए, _ वो कभी नहीं बताएगी और अगर बताती भी है तो आप कभी नहीं समझेंगे.
अरे भई ! जिसे उसकी माँ ने नहीं समझा, आप क्या खाक समझेंगे ?
और भी जाने क्या-क्या बकवास दलीलों के रूप में सुनने को मिलती है.
महिलाओं के शांत चेहरों और फूल से हँसी के पीछे कौन-कौन से तूफ़ान गुज़र रहे होते है, आप कभी नहीं समझोगे। स्त्री को समझने के लिए सात जन्म कम पड़ जायेंगे.
एक दिन स्त्री की जगह लेकर तो देखो दिन में तारे नज़र आयेंगे.
समस्त स्त्री जाति को समर्पित
काम करने वाली महिला को चुनते समय आपको यह स्वीकार करना होगा कि वह घर नहीं संभाल सकती.

_ यदि आपने एक गृहिणी को चुना है, जो आपकी देखभाल कर सकती है और आपके घर का पूरा प्रबंधन कर सकती है,
तो आपको यह स्वीकार करना होगा कि वह पैसा नहीं कमा रही.
_ यदि आप एक आज्ञाकारी महिला चुनते हैं, तो आपको यह स्वीकार करना चाहिए कि वह आप पर निर्भर है और आपको उसका जीवन सुनिश्चित करना है.
_ यदि आप एक मजबूत महिला के साथ रहने का फैसला करते हैं, तो आपको यह स्वीकार करना होगा कि उसकी अपनी राय है.
_ यदि आप सुंदर स्त्री को चुनते हो तो आपको बड़े खर्चे उठाने पड़ेंगे.
_ यदि आप एक सफल महिला के साथ रहने का फैसला करते हैं, तो आपको यह समझना चाहिए कि उसके पास अपनी अलग जीवन शैली है और उसके अपने लक्ष्य और महत्वाकांक्षाएं हैं.
_ परफेक्ट जैसी कोई चीज नहीं होती, हर किसी की अपनी अपनी ढब होती है, जो उसे अनोखा बनाती है !
_ हर स्त्री परिपूर्ण है… हर बेटी अनोखी…
स्त्री पिता के घर से पति के घर आती है.

_ पति से दुखी होती है तो वापस पिता के घर आ जाती है.
_ पिता का घर और पति का घर, इन दोनों घरों के बीच डगमगाती रहती है,
_ लेकिन यह कोई भी उसका अपना घर नहीं कहलाता.
_ स्त्री अपना घर खुद क्यों नहीं बनाती ?
_ कमाने वाली स्त्रियां अपना मकान खरीद सकती हैं.
_ यह क्या कि कभी पति, कभी पिता के आगे भीख मांगती रहें.
_ आधुनिक स्त्रियों, सोचो.

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