लेकिन जहाँ संवेदनाएं पिसती हों, दम घुटता हो, चाहतें दम तोड़ती हों, एक- दूसरे को देख कर परेशानी होती हो, वह रिश्ता रिश्ता नहीं, बोझ बन जाता है. वहाँ इन्सानियत की अहमियत ही समाप्त हो जाती है.
रिश्ता वही अच्छा लगता है, जिससे प्यार रिसता रहे.
लेकिन जहाँ संवेदनाएं पिसती हों, दम घुटता हो, चाहतें दम तोड़ती हों, एक- दूसरे को देख कर परेशानी होती हो, वह रिश्ता रिश्ता नहीं, बोझ बन जाता है. वहाँ इन्सानियत की अहमियत ही समाप्त हो जाती है.
रिश्ता वही अच्छा लगता है, जिससे प्यार रिसता रहे.