मस्त विचार 398

रिश्ता वही अच्छा लगता है, जिससे प्यार रिसता रहे.

लेकिन जहाँ संवेदनाएं पिसती हों, दम घुटता हो,

चाहतें दम तोड़ती हों,

एक- दूसरे को देख कर परेशानी होती हो,

वह रिश्ता रिश्ता नहीं, बोझ बन जाता है.

वहाँ इन्सानियत की अहमियत ही समाप्त हो जाती है.

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