“कुछ भी बाद के लिए मत छोड़ो.
_ बाद में, कॉफी ठंडी हो जाती है.
_ बाद में, तुम्हारी रुचि खत्म हो जाती है.
_ बाद में, दिन रात में बदल जाता है.
_ बाद में, लोग बड़े हो जाते हैं.
_ बाद में, लोग बूढ़े हो जाते हैं.
_ बाद में, ज़िंदगी गुजर जाती है.
_ बाद में, तुम पछताते हो कि कुछ क्यों नहीं किया…
_ जब तुम्हारे पास मौका था.
_ ज़िंदगी एक क्षणभंगुर नृत्य है, एक नाज़ुक संतुलन, जो हमारे सामने खुलने वाले पलों से बनी है, जो फिर कभी उसी तरह लौटकर नहीं आते.
_ पछतावा एक कड़वी दवा है, एक बोझ जो आत्मा पर भारी पड़ता है, छूटे हुए अवसरों और अनकहे शब्दों के साथ.
_ तो, कुछ भी बाद के लिए न छोड़ें.
_ पलों को उसी समय थाम लें, जब वे आएं, खुले दिल और फैलाए हुए हाथों से उन संभावनाओं को गले लगाएं, जो आपके सामने हैं.
_ क्योंकि अंत में, हमें उन चीज़ों का पछतावा नहीं होता, जो हमने कीं, बल्कि उन चीज़ों का होता है, जो हमने नहीं कीं,
_ उन शब्दों का, जो अनकहे रह गए, और उन सपनों का, जो अधूरे रह गए”
“बाद में”
– आपसे बाद में बात करूँगा.
– मैं आपको बाद में फोन करूँगा.
– बाद में मिलते हैं.
– हम बाद में टहलेंगे.
“मैं आपको बाद में बताऊँगा.”
हम सब कुछ बाद के लिए छोड़ देते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि “बाद में” हमारे पास नहीं होता.
बाद में, हमारे प्रियजन हमारे साथ नहीं रहते.
बाद में, हम उन्हें सुन नहीं पाते, न ही देख पाते हैं.
बाद में, वे सिर्फ यादें बनकर रह जाते हैं.
बाद में, दिन रात बन जाता है, ताकत बेबसी में बदल जाती है,
मुस्कान एक तिरछी रेखा बन जाती है, और जीवन मृत्यु में बदल जाता है.
“बाद में” बन जाता है “बहुत देर हो चुकी”