_ “जहाँ शब्द रुक जाते हैं, वहीं मन बोलता है…”
_ “अंदर एक गीत चल रहा है, सिर्फ सुनने के लिए – समझने के लिए नहीं.!!”
_ हर भावना शब्दों में नहीं उतरती — कुछ सिर्फ़ मौन में धड़कती हैं.
_ फिर भी लोग शब्दों की मांग करते हैं, जैसे बिना बोले भाव अधूरे हों.
_ पर सच्ची समझ तो वहीं शुरू होती है, जहाँ शब्द ख़त्म हो जाते हैं.!!
“क्या मैं या और लोग बातों के पीछे छिपी भावना को महसूस कर पाते हैं, या सिर्फ़ शब्दों को ही सुनते हैं ?”
कभी-कभी जो लोग हमें तोड़ते हैं, वे अनजाने में हमें अपने असली आधार की ओर लौटा देते हैं — वो आधार जो किसी व्यक्ति पर नहीं, बल्कि अपने भीतर की स्थिरता-शांति पर टिका होता है.
— किसी के लौटने या न लौटने से उसका मूल्य नहीं घटता”
_ चाहे आप उन्हें बाहर निकालने की कितनी भी कोशिश करो,
_ लेकिन वे हमेशा घूम फिर कर उसी जगह वापस पहुँच जाते हैं.!!
— कुछ लोग अपने भीतर की नकारात्मकता से कभी मुक्त नहीं हो पाते.
_ चाहे आप उन्हें कितना भी संभालें, समझाएँ या अवसर दें,
_ वे फिर उसी गंदगी, उसी मानसिकता में लौट जाते हैं..
— क्योंकि परिवर्तन इच्छा से नहीं, चेतना से आता है.
_ यह बहुत भारी है—उनसे वो बातें न कह पाना.. जो मै कहना चाहता हूँ..
_ क्योंकि वे हमेशा कुछ और ही चुनेंगे और मुझे इस बात का पछतावा रहेगा कि मैंने उन्हें कुछ कहा ही क्यों था.!!
“क्या मैं दूसरों को बदलने की कोशिश में अपनी शांति खो देता हूँ ?”
_ कभी-कभी बुद्धिमानी यही होती है — कि हम देख कर भी दूरी बनाए रखें.!!