सुविचार 4047
“दीपक” इसलिए वंदनीय है…क्योंकि _वह दूसरों “के” लिए जलता है,
दूसरों “से” नहीं जलता !!
मैं दीपक हूँ, मेरी फ़ितरत है, उजाला करना,
_वो समझते हैं कि, मजबूर हूँ, जलने के लिए..
दूसरों “से” नहीं जलता !!
_वो समझते हैं कि, मजबूर हूँ, जलने के लिए..
_ जाने- अनजाने आप अपने लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं.
*जो एक बार उड़ जायें* *तो वापस नहीं आते…*
_ मस्तिष्क के लिए अध्ययन उतना ही जरुरी है, जितना शरीर के लिए व्यायाम..
*कुछ चुप हैं,* *…इसलिये रिश्ते हैं ।।*
*ना जाने कितने सवालों की,* *आबरू तो रखती है…*
_ क्योंकि बिना गलती के भी बहुत कुछ सुना है मैंने..!!