सुविचार 4348
ढूंढोगे अगर तो ही रास्ते मिलेंगे,,,
मंज़िलों की फितरत है खुद चलकर नहीं आतीं..
मंज़िलों की फितरत है खुद चलकर नहीं आतीं..
_आज नहीं तो कल उसको दुगुना मिलता है, और इसका भुगतान व्यक्ति को आगे के समय में करना पड़ सकता है…!
अरे वक्त लगता है बीज को फसल बनने में !
लेकिन हारने के बाद जो गले लगाए सिर्फ वही अपना होता है.
अगर स्वीकार नहीं कर सकते तो बदल दें और अगर बदल नहीं सकते तो बेहतर है, इसे रब पर छोड़ दें…
_ इसलिए परेशान होने का कोई मतलब नहीं है..!!